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जन्म-दिवस

4.6
503

आया और दिनों सा एक दिन :यह भी ; सामान्य , पूर्व-निश्चित , प्रत्याशित / ...पर यह क्या , देखो / वह आया और गुज़रा , चला गया ले आयु का एक और वर्ष ! वनपाखी से उड़ते और गुज़रते ये दिन.. इस एक दिन में ही पूरे ...

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लेखक के बारे में
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सुमन सिन्हा

जन्म : 21 फरवरी, 1967 (गर्दनीबाग,पटना, बिहार) v शिक्षा-दीक्षा : आरंभिक शिक्षा – बी.टी.पी.एस.हाई स्कूल, बरौनी (बेगुसराय) से मध्य एवं माध्यमिक शिक्षा, मगध महिला महाविद्यालय, पटना से अंतर-स्नातक एवं स्नातक (समाजशास्त्र प्रतिष्ठा), दरभंगा हॉउस, पटना विश्वविद्यालय, पटना से स्नातकोत्तर (श्रम एवं समाज कल्याण) | v लेखन-यात्रा : सन 1980 ई. से नियमित संस्मरण एवं कविता लेखन | v अभिरुचि : सांस्कृतिक कार्यक्रमों एवं संगोष्ठियों में नियमित भागीदारी | v कृतियाँ : ‘प्रत्यर्पण’ (कविता संग्रह), ‘अन्तरीप’ (संस्मरण संकलन) अप्रकाशित | v संप्रति : सदस्य, सिने यात्रा पटना, बांकीपुर क्लब पटना, द न्यू पटना क्लब, बिहार महिला उद्योग संघ पटना, बतौर समाजसेविका, किलकारी पटना, पूर्व सदस्य इनर व्हील पटना एवं अन्य सामाजिक, सांस्कृतिक एवं शैक्षणिक संस्थानों से जुड़ी हुई | v आजीविका : ड्रेस डिजाईनर एवं ‘विविधा’ नामक गारमेंट्स कंपनी की संचालिका |

समीक्षा
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    Anil Analhatu
    27 अक्टूबर 2015
    सुमन जी की कविताओं का कैनवास हमेश बहुत बड़ा होता है । जन्म -दिवस पर बात करते  करते सुमन जीवन और मृत्यु की दर्शनिकता तक चली जाती हैं । जन्म दिन पर लिखी ऐसी तटस्थ  और निरपेक्ष कविता अन्यत्र नहीं दिखी। बड़े बेलौसपन से जन्म-दिन का आना और जाना देखती हैं , हर गुज़रा हुआ जन्म-दिवस भविष्य से एक वर्ष कम कर देता है औए अतीत मे एक वर्ष की वृद्धि हो जाती है ।  लेकिन कविता यहीं नहीं रुकती वह यह भी बताती है कि ......दिन यूँ ही गुजरते जायेंगे, और फिर ठहर जायेगा एक दिन .........!!।यह कविता तीव्र मृत्यु बोध की  कविता है, किन्हीं अर्थों मे अस्तित्ववादी भी।  मैं भी मुकेश सिन्हा जी की  तरह कवयित्री को सलाह दूंगा कि .... जन्मदिवस पर भी दर्द की तलाश ही क्यों, कवियत्री !! बी हैप्पी !! एंड ऑलवेज बी हैप्पी !!
  • author
    ज्योति खरे
    15 अक्टूबर 2015
    दिन यूं ही गुजरते जायेंगे  अतीत वर्तमान का साथ देता है और वर्मान भविष्य का यही जीवन चक्र है-- जीवन चक्र को खुबसूरत अंदाज में व्यक्त करती रचना  जन्मदिन तो जीवन जीने की गिनती है  बहुत सुंदर बधाई 
  • author
    Sanjeeva Kumar
    22 अक्टूबर 2015
    eik aur bahot hi hridaysparshi kavita, mann mein chal rahe antardwand ki bahot hi achhi abhiwyakti, janmdivas ke bahaane jeevan ki sarthakta ki khoj.
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    Anil Analhatu
    27 अक्टूबर 2015
    सुमन जी की कविताओं का कैनवास हमेश बहुत बड़ा होता है । जन्म -दिवस पर बात करते  करते सुमन जीवन और मृत्यु की दर्शनिकता तक चली जाती हैं । जन्म दिन पर लिखी ऐसी तटस्थ  और निरपेक्ष कविता अन्यत्र नहीं दिखी। बड़े बेलौसपन से जन्म-दिन का आना और जाना देखती हैं , हर गुज़रा हुआ जन्म-दिवस भविष्य से एक वर्ष कम कर देता है औए अतीत मे एक वर्ष की वृद्धि हो जाती है ।  लेकिन कविता यहीं नहीं रुकती वह यह भी बताती है कि ......दिन यूँ ही गुजरते जायेंगे, और फिर ठहर जायेगा एक दिन .........!!।यह कविता तीव्र मृत्यु बोध की  कविता है, किन्हीं अर्थों मे अस्तित्ववादी भी।  मैं भी मुकेश सिन्हा जी की  तरह कवयित्री को सलाह दूंगा कि .... जन्मदिवस पर भी दर्द की तलाश ही क्यों, कवियत्री !! बी हैप्पी !! एंड ऑलवेज बी हैप्पी !!
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    ज्योति खरे
    15 अक्टूबर 2015
    दिन यूं ही गुजरते जायेंगे  अतीत वर्तमान का साथ देता है और वर्मान भविष्य का यही जीवन चक्र है-- जीवन चक्र को खुबसूरत अंदाज में व्यक्त करती रचना  जन्मदिन तो जीवन जीने की गिनती है  बहुत सुंदर बधाई 
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    Sanjeeva Kumar
    22 अक्टूबर 2015
    eik aur bahot hi hridaysparshi kavita, mann mein chal rahe antardwand ki bahot hi achhi abhiwyakti, janmdivas ke bahaane jeevan ki sarthakta ki khoj.