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जंगल

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4.4

हिरणी जवान हो चली थी। अपनी अद्भुत सुंदरता को देखकर वह सिहर उठती थी। उसके मित्रगण उसकी मुक्तकंठ प्रशंसा करते थे। उसका मन कई तरह की उमंगों और उत्साह से भर उठता। वह यहां - वहां दौड़ती फिरती, मस्ती ...