हे जननी माँ , तेरा आँचल कितना बड़ा है। जब जन्म दिया तुने मुझको, मैं आ गई इस धरा पर, बंद थे नन्हे दो नयन, पल पल सुरक्षा का एहसास हुआ, तेरे आँचल में। जब बड़ी हुई, तेरे आँगन में, गलतियां हर बार की, जब भी ...
माँ पर लिखी गई किसी भी रचना की समीक्षा तो संभव ही नहीं है.... परंतु आपका लेखन उत्कृष्ट है... सस्नेह अभिनंदन..... कृपया अपने बहुमूल्य समय से कुछ क्षण मेरी रचनाओं को भी अवश्य देॉ
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बहुत खूबसूरत कविता वन्दना जी! माँ के आँचल से सुखद जगह कोई और हो ही नहीं सकती। आपकी लेखनी ने उस सुख के अहसास को बयां करने में कमाल ही कर दिया है। इस रचना के लिए बधाई आपको!
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