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जमाई के सिर पर खाट

4.3
11959

शाम के वक्त कालबेल लगातार बजते देख गोपा से रहा नहीं गया । अरे भई कौन है आ रही हूँ मेरी तो घंटी ही फूक डालोगे क्या ? अरे भई आ रहे है । दरवाजा खोलते ही हरियाणवी जमाई चिरंजीवी अंदर धड़धड़ाते हुए ...

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लेखक के बारे में

अल्फ़ाज़ पिरोती हूँ ।

समीक्षा
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    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    Abhishek sharma
    01 जनवरी 2019
    हास्य नाटक 😁
  • author
    Sushma Sharma
    26 अक्टूबर 2021
    हमारे यहां कहावत इसी कहानी पर बनी हुई है जुलाहे के जमाई की तरह अकड़ दिखाने का यही परिणाम होता है। हंसाने के लिए धन्यवाद।
  • author
    विजय सिंह "बैस"
    21 अक्टूबर 2019
    अच्छी हास्य रचना ।आपकी रचना पढ़ कर गांव के बुजुर्गों की याद आ गई । इसी प्रकार की कहानियों में बचपन बीता है ।
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    Abhishek sharma
    01 जनवरी 2019
    हास्य नाटक 😁
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    Sushma Sharma
    26 अक्टूबर 2021
    हमारे यहां कहावत इसी कहानी पर बनी हुई है जुलाहे के जमाई की तरह अकड़ दिखाने का यही परिणाम होता है। हंसाने के लिए धन्यवाद।
  • author
    विजय सिंह "बैस"
    21 अक्टूबर 2019
    अच्छी हास्य रचना ।आपकी रचना पढ़ कर गांव के बुजुर्गों की याद आ गई । इसी प्रकार की कहानियों में बचपन बीता है ।