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जल बिन मछ़ली .....।।

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ईश्क के संमूदर की मछ़ली थी मैं, ड़ूबने का ड़र नहीं था,काबिल तैराक थी ख्वाहिशो ने आग लगा दि संमूदर को तम्मनाओं से ड़रना सिखो ईन्सानो ख्वाहिशे थी डूबकर मरने की ईश्क की कैसीआग लगा दी आशिक ने ना चैन से  ...

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लेखक के बारे में
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Upendra Bhatt

ये मेरे मालिक कितने खेल करायेगा तू ईस फकिर से?

समीक्षा
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  • author
    वाह वाह वाह वाह शानदार और जानदार प्रस्तुति
  • author
    Mrs Patil
    16 सितम्बर 2020
    ईश्क संमुदर....व्वाह बहुत खूब | और सही भी
  • author
    बलजीत कौर
    16 सितम्बर 2020
    wahh, bahut hi sunder. 👏👏👏👏👏
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    वाह वाह वाह वाह शानदार और जानदार प्रस्तुति
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    Mrs Patil
    16 सितम्बर 2020
    ईश्क संमुदर....व्वाह बहुत खूब | और सही भी
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    बलजीत कौर
    16 सितम्बर 2020
    wahh, bahut hi sunder. 👏👏👏👏👏