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जागते सपने

4.2
1002

" इधर सरक आ धनिया। डब्बलबेड से लुढ़क न जाना कहीं " सरजू ने जमीन पर बने चौकौर खांचे पर खिसक के जगह बनाते हुए कहा। धनिया ने मुस्कुरा के उसकी बाहों के तकिये पर सर रख दिया। " बच्चे का कर रहे ?" वो ...

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लेखक के बारे में
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डॉ. छवि निगम
समीक्षा
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  • कुल टिप्पणी
  • author
    ANURAG
    18 दिसम्बर 2017
    बहुत ही हृदय स्पर्शी।
  • author
    07 अगस्त 2017
    अच्छी लघुकथा। साधुवाद!
  • author
    कनक "कनक"
    06 अक्टूबर 2019
    बेहद कठिन जीवन
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    ANURAG
    18 दिसम्बर 2017
    बहुत ही हृदय स्पर्शी।
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    07 अगस्त 2017
    अच्छी लघुकथा। साधुवाद!
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    कनक "कनक"
    06 अक्टूबर 2019
    बेहद कठिन जीवन