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जग की रीत विचित्र

4.7
160

मंदिर जाते दीन बन बनते महान जो , करत जतन बहु रीत सुजान जग के। शाम भये फिर देख लो उनकी ही बान, सुरा संग वाकी दिखती प्रीत अनोखी । नेता सबकेहितकर बने घूमें गली गली , जगह -जगह पर सबके मिलते गले फिरें ...

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लेखक के बारे में
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डॉ. सरला सिंह

https://www.jeevanpath.com/ परिचय -- नाम --डॉ.सरला सिंह माता का नाम--स्व. कैलाश देवी पिता का नाम----स्व. श्री बासुदेव सिंह पति/पत्नि का नाम---श्री राजेश्वर सिंह जन्मतिथि -- चार अप्रैल जन्म स्थान--सुल्तानपुर, उत्तर प्रदेश शिक्षा--एम.ए., बी.एड. ,पी-एच.डी. कार्यक्षेत्र--टी.जी.टी.(हिन्दी) दिल्ली सामाजिक क्षेत्र विधा ---विशेष रूप से "छन्दमुकत"[email protected] प्रकाशन __"काव्यकलश","नवकाव्यांजलि" " "स्वप्नगंधा" सभी साझाकाव्य संकलन "जीवनपथ"काव्यसंग्रह शीघ्र प्रकाश्य द्वारा ,पौराणिक प्रबंध काव्यों में पात्रों का चरित्र । कविताओं का यूथएजेन्डा,नये पल्लव, काव्यरंगोली तथा गुफ्तुगू जैसी प्रसिद्ध साहित्यक पत्रिकाओं में प्रकाशन । दैनिक पत्रिकाओं यथा दिल्ली हमारा मैट्रो, उत्कर्ष मेल आदि में नियमित प्रकाशन । फेसबुक तथ व्हाट्सएप से जुड़े साहित्यिक ग्रुपों में नियमित रूप से कविताएँ भेजना । अनुराधा प्रकाशन दिल्ली । सम्मान - अन्य उप्लब्धियाँ- लेखन का उद्देश्य-सामाजिक विसंगतियांं दूर करना । [email protected]

समीक्षा
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  • कुल टिप्पणी
  • author
    Kavi Kamal Allahabadi
    30 नवम्बर 2016
    बहुत ही सुन्दर रचना है ।भावपूर्ण है। जग की रीत अजब है।समझ में ना आवे ।जग की रीत विचित्र है ।समझ में ना आवे ।
  • author
    Rajeshwar Singh
    27 नवम्बर 2016
    bahut sunder .
  • author
    Ravi Singh
    27 नवम्बर 2016
    बहुत सुन्दर रचना।
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  • कुल टिप्पणी
  • author
    Kavi Kamal Allahabadi
    30 नवम्बर 2016
    बहुत ही सुन्दर रचना है ।भावपूर्ण है। जग की रीत अजब है।समझ में ना आवे ।जग की रीत विचित्र है ।समझ में ना आवे ।
  • author
    Rajeshwar Singh
    27 नवम्बर 2016
    bahut sunder .
  • author
    Ravi Singh
    27 नवम्बर 2016
    बहुत सुन्दर रचना।