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जब भी हार कर लौटता हूँ

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बेरोजगारी के दिनों की दिनचर्या

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लेखक के बारे में

शिक्षा: पीएच. डी संप्रति: अध्यापन [दिल्ली विश्वविद्यालय] जन्म: २८-४-१९६८, इजोत, मधुबनी[बिहार] प्रकाशन: किसी की याद जो आए तो ग़ज़ल कहता हूँ' [ग़ज़लों का संग्रह] 'जब उठ जाता हूँ सतह से'[कविता-संकलन], द्वि. सं. 'सुनो समय जो कहता है' [संपादन, कविता संकलन],  'सुनो मेघ तुम' [मेघदूत का हिंदी काव्य रूपांतरण] स्त्री उपनिषद् [दो भागोंमें ] कविता संग्रह: भाग १. मुखौटा जो चेहरे से चिपक गया है; भाग २. हमारे समय की नायिका काम पर जा रही है. प्रजा में कोई असंतोष नहीं है [कविता संग्रह] काव्य की पक्षधरता [आलोचना एवं काव्य चिंतन] 'शंकराचार्य का समाज दर्शन' [दर्शनशास्त्र] सत्तामीमांसा एवं ज्ञानमीमांसा [दर्शनशास्त्र] संतुलित जीवन की कला, [दर्शनशास्त्र] जयपुर से निकलने वाली साहित्यिक मासिक पत्रिका उत्पल  के लिए “सब्दहि सबद भया उजियारा” नाम से कविता आलोचना विषय पर कॉलम लेखन.    पत्रिकाओं आदि में कतिपय प्रकाशन.               

समीक्षा
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  • कुल टिप्पणी
  • author
    Satyendra Kumar Upadhyay
    18 অক্টোবর 2015
    "शायद , सिर्फ़, नज़र " जैसे सुन्दर शब्द हैं । राष्ट्र भाषा का पूर्ण अनुपालन नहीं करती है बल्कि अपमान कर रही है । नितांत सारहीन व अप्रासांगिक कविता है ।
  • author
    Dr-Monika Sharma
    15 অক্টোবর 2015
    उम्मीदें ही मन का सहारा होती हैं । गहन रचना 
  • author
    Aarti Yadav "Yaduvanshi"
    22 মে 2020
    बहुत खूब जी
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    Satyendra Kumar Upadhyay
    18 অক্টোবর 2015
    "शायद , सिर्फ़, नज़र " जैसे सुन्दर शब्द हैं । राष्ट्र भाषा का पूर्ण अनुपालन नहीं करती है बल्कि अपमान कर रही है । नितांत सारहीन व अप्रासांगिक कविता है ।
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    Dr-Monika Sharma
    15 অক্টোবর 2015
    उम्मीदें ही मन का सहारा होती हैं । गहन रचना 
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    Aarti Yadav "Yaduvanshi"
    22 মে 2020
    बहुत खूब जी