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जाने कहाँ गए वो दिन!

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सच मानिये पहले का ज़माना ही ठीक था! आजकल के ज़माने से पुराना ही ठीक था! अपने ही नहीं सुनते हैं एक वो भी दौर था, औरों से दिल की बात बताना ही ठीक था! एक दूसरे पर हँसना बिलकुल ही मना था, ...

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लेखक के बारे में

राजेश पाण्डेय "घायल"

समीक्षा
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    सेंटी गर्ल ,,,👻
    16 जुलाई 2021
    वाह क्या बात कही आपने सर ,,, सच में जिंदगी की होड़ में जीवन कहा से कहा आ गया ,,,,🙆🏻‍♀️😟 एक वक्त था खुले आम बच्चे पूरे गांव में खेलते थे और अब आंगन से भी लापता हो जाते है ,,,😒😖 बहुत बदल गया इंसान और साथ में ये वक्त भी ,,,😕 बेहद खूबसूरत प्रस्तुति ,,,🤗🤗🙏
  • author
    Aarti Sirsat
    16 जुलाई 2021
    पता नहीं कहा गये वो दिन..... बहुत बहुत शानदार बेहतरीन लाजवाब प्रस्तुति👍👍👍👍👍👍👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐
  • author
    Kshama Sharma
    16 जुलाई 2021
    आधुनिकता की अंधी दौड़ में सुकूं खो सा गया है। पैसे की लालच में आदमी मशीन सा हो गया है।रेस्टोरेंट से घर का खाना मगांते हैं और घर में पिज्ज़ा बनाते है।पश्चिम में भागते हुए मनुज पूरब को भूल गया है। आपने अपनी रचना के माध्यम से आपने बहुत अच्छे से समझाया है।बहुत खूब सर
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    सेंटी गर्ल ,,,👻
    16 जुलाई 2021
    वाह क्या बात कही आपने सर ,,, सच में जिंदगी की होड़ में जीवन कहा से कहा आ गया ,,,,🙆🏻‍♀️😟 एक वक्त था खुले आम बच्चे पूरे गांव में खेलते थे और अब आंगन से भी लापता हो जाते है ,,,😒😖 बहुत बदल गया इंसान और साथ में ये वक्त भी ,,,😕 बेहद खूबसूरत प्रस्तुति ,,,🤗🤗🙏
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    Aarti Sirsat
    16 जुलाई 2021
    पता नहीं कहा गये वो दिन..... बहुत बहुत शानदार बेहतरीन लाजवाब प्रस्तुति👍👍👍👍👍👍👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐
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    Kshama Sharma
    16 जुलाई 2021
    आधुनिकता की अंधी दौड़ में सुकूं खो सा गया है। पैसे की लालच में आदमी मशीन सा हो गया है।रेस्टोरेंट से घर का खाना मगांते हैं और घर में पिज्ज़ा बनाते है।पश्चिम में भागते हुए मनुज पूरब को भूल गया है। आपने अपनी रचना के माध्यम से आपने बहुत अच्छे से समझाया है।बहुत खूब सर