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इतने बैर यहाँ

4.6
421

बढ़ रहे हैं आपस में,देखो इतने बैर यहाँ। जी रहे हैं लोग सब,अपनों के बगैर यहाँ॥ लगे हुए हैं सारे ही,एक-दूजे को ठगने में। किस को अपना कहे ,किस को गैर यहाँ॥ अपनी-अपनी धुन में, डूबा हुआ हर कोई सुने न ...

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लेखक के बारे में

प्रेम नारायण शर्मा उर्फ प्रेम फर्रूखाबादी शिक्षा बीo एo.सरकारी सेवा से फुरसत.गीत , कविता लिखना शौक है। 1994 में "श्री राम भक्त हनुमान" कैसिट के भजन लिखे जिन्हें मनहर उधास जी ने गाये.2010 में एक पुस्तक प्रकशित हुई "अक्स तेरा लफ्ज मेरे ".वर्तमान में लिखना जारी.और ग्रेटर नोइडा में निवास। मो0: 9958871010

समीक्षा
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  • कुल टिप्पणी
  • author
    Manjit Singh
    24 जून 2020
    Sharma ji aapne vartmaan haalaat ki samiksha. ki.lakh rupye ki baat kahi. iska ek hi upaay hai harinaam sumiran. salutations to you thousand times
  • author
    03 अक्टूबर 2023
    आज के हालात की हक़ीक़त बताती है यह कविता। अति सुंदर। मेरी कविता भी पढ़े🌺🙏
  • author
    अरविन्द सिन्हा
    26 जून 2022
    बहुत ही सुन्दर रचना , वास्तव में सभी यहॉं बस अपना आप में ही खोए हुए हैं ।
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    Manjit Singh
    24 जून 2020
    Sharma ji aapne vartmaan haalaat ki samiksha. ki.lakh rupye ki baat kahi. iska ek hi upaay hai harinaam sumiran. salutations to you thousand times
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    03 अक्टूबर 2023
    आज के हालात की हक़ीक़त बताती है यह कविता। अति सुंदर। मेरी कविता भी पढ़े🌺🙏
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    अरविन्द सिन्हा
    26 जून 2022
    बहुत ही सुन्दर रचना , वास्तव में सभी यहॉं बस अपना आप में ही खोए हुए हैं ।