pratilipi-logo प्रतिलिपि
हिन्दी

इश्क़ और लालकेश्वर प्रसाद

4.1
4387

"साहेब मधु से बुलवाइये अब की बार, अब यही बचीं हैं,जिन्होंने अब तक कुछ भी न बोला है।" लालकेश्वर प्रसाद लास्ट बेंच से पान पराग पान मसाला से रंगीन किये हुए अपने दाँतो को निपोरते हुए बोले। लालकेश्वर के ...

अभी पढ़ें
लेखक के बारे में
author
Shankar

यहाँ उपलब्ध सारी रचनाओं के सर्वाधिकार लेखक के पास सुरक्षित हैं,इन्हें या इनके किसी भी हिस्से को किसी भी अन्य तरीके से कहीं भी बिना लेखक के अनुमति के इस्तेमाल नही किया जा सकता।

समीक्षा
  • author
    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    ram garg
    16 जनवरी 2018
    क्या आप खूब गागर में सागर भर्ती हुए कहानी है इस कहानी में भाषा का आज का प्रयोग लड़ता पड़ता सा कुछ है छोटी सी रचना सार्थक साबित होती है पर कहानी में कुछ नयापन नहीं है वही घिसा पिटा डायलॉग पुरानी बातें पर एक बार जिसने बहुत ही रोचक है जो एक्सीडेंट के समय के दौरान जो भाव दिखाया गया हैऔर पदों का इस्तेमाल बहुत ही अद्भुत तरीके से किया है पर यह बात समझ में नहीं आती ऐसे छात्र क्या इन पदों को याद कर पाते हैं जो पान की गुलेरी ले रहे हैं पराग खा रहे हैं फिर भी एक उम्दा रचना राघव शंकर जी आपका
  • author
    Omkar Kanojia "Aaghaz-e-Shayar"
    15 जनवरी 2018
    ekdam jhakass
  • author
    Shweta Prajapati
    10 जनवरी 2018
    bhut khub likha hai
  • author
    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    ram garg
    16 जनवरी 2018
    क्या आप खूब गागर में सागर भर्ती हुए कहानी है इस कहानी में भाषा का आज का प्रयोग लड़ता पड़ता सा कुछ है छोटी सी रचना सार्थक साबित होती है पर कहानी में कुछ नयापन नहीं है वही घिसा पिटा डायलॉग पुरानी बातें पर एक बार जिसने बहुत ही रोचक है जो एक्सीडेंट के समय के दौरान जो भाव दिखाया गया हैऔर पदों का इस्तेमाल बहुत ही अद्भुत तरीके से किया है पर यह बात समझ में नहीं आती ऐसे छात्र क्या इन पदों को याद कर पाते हैं जो पान की गुलेरी ले रहे हैं पराग खा रहे हैं फिर भी एक उम्दा रचना राघव शंकर जी आपका
  • author
    Omkar Kanojia "Aaghaz-e-Shayar"
    15 जनवरी 2018
    ekdam jhakass
  • author
    Shweta Prajapati
    10 जनवरी 2018
    bhut khub likha hai