"साहेब मधु से बुलवाइये अब की बार, अब यही बचीं हैं,जिन्होंने अब तक कुछ भी न बोला है।" लालकेश्वर प्रसाद लास्ट बेंच से पान पराग पान मसाला से रंगीन किये हुए अपने दाँतो को निपोरते हुए बोले। लालकेश्वर के ...
यहाँ उपलब्ध सारी रचनाओं के सर्वाधिकार लेखक के पास सुरक्षित हैं,इन्हें या इनके किसी भी हिस्से को किसी भी अन्य तरीके से कहीं भी बिना लेखक के अनुमति के इस्तेमाल नही किया जा सकता।
सारांश
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क्या आप खूब गागर में सागर भर्ती हुए कहानी है इस कहानी में भाषा का आज का प्रयोग लड़ता पड़ता सा कुछ है छोटी सी रचना सार्थक साबित होती है पर कहानी में कुछ नयापन नहीं है वही घिसा पिटा डायलॉग पुरानी बातें पर एक बार जिसने बहुत ही रोचक है जो एक्सीडेंट के समय के दौरान जो भाव दिखाया गया हैऔर पदों का इस्तेमाल बहुत ही अद्भुत तरीके से किया है पर यह बात समझ में नहीं आती ऐसे छात्र क्या इन पदों को याद कर पाते हैं जो पान की गुलेरी ले रहे हैं पराग खा रहे हैं
फिर भी एक उम्दा रचना राघव शंकर जी आपका
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क्या आप खूब गागर में सागर भर्ती हुए कहानी है इस कहानी में भाषा का आज का प्रयोग लड़ता पड़ता सा कुछ है छोटी सी रचना सार्थक साबित होती है पर कहानी में कुछ नयापन नहीं है वही घिसा पिटा डायलॉग पुरानी बातें पर एक बार जिसने बहुत ही रोचक है जो एक्सीडेंट के समय के दौरान जो भाव दिखाया गया हैऔर पदों का इस्तेमाल बहुत ही अद्भुत तरीके से किया है पर यह बात समझ में नहीं आती ऐसे छात्र क्या इन पदों को याद कर पाते हैं जो पान की गुलेरी ले रहे हैं पराग खा रहे हैं
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