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इश्क़ वो आतिश है ग़ालिब

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4.3

सुमी करवट बदलते-से समय में वह एक उनींदी-सी शाम थी । एक मरते हुए दिन की उदास , सर्द शाम । काजल के धब्बे-सी फैलती हुई । छूट गई धड़कन-सी अनाम । ऐसा क्या था उस शाम में ? धीरे-धीरे सरकती हुई एक निस्तेज ...