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इंसानियत को अपने अंदर ज़िंदा रखिये इसका बहुत स्कोप है

4.6
18442

तकरीबन छः महीने पहले की बात है। सुबह के साढ़े नौ बज रहे थे... और यही मेरे कॉलेज का समय भी होता है। कॉलेज के अंदर एंट्री करती हूँ... मेरे साथ और भी कई स्टूडेंट अंदर आते हैं... मुझे 100 का नोट ज़मीन पर ...

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लेखक के बारे में
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आँचल शुक्ला3

कुछ नेकियाँ ऐसी भी होने चाहिए,जिनका भगवान के सिवा कोई साक्षी ना हो अपने बारे में वैसे ज़्यादा कुछ तो नहीं लिखना। बस सरल और निश्छल हूँ। अपनी दुनिया में मस्त-मगन हूँ। ना सम्मान का मोह है और ना ही अपमान का डर। खुद्दारी मेरे लिए सबसे बढ़कर है। किसी की मदद के लिए हमेशा होंठो पर हां है मेरे। किसी का दिल ना दुखे ये एक कोशिश है मेरी।

समीक्षा
  • author
    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    Pooja Agarwal
    22 अगस्त 2017
    बेहद सराहनीय रचना है यह ,पढकर बहुत खुशी हुई। लेखक को बहुत बहुत बधाई।
  • author
    कबीर
    24 अक्टूबर 2017
    आँचल जी, बस इसी भरोसे तो दुनिया चल रही हैं
  • author
    Mamta Upadhyay
    03 अप्रैल 2019
    बहुत खूबसूरत रचना
  • author
    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    Pooja Agarwal
    22 अगस्त 2017
    बेहद सराहनीय रचना है यह ,पढकर बहुत खुशी हुई। लेखक को बहुत बहुत बधाई।
  • author
    कबीर
    24 अक्टूबर 2017
    आँचल जी, बस इसी भरोसे तो दुनिया चल रही हैं
  • author
    Mamta Upadhyay
    03 अप्रैल 2019
    बहुत खूबसूरत रचना