पहला बोल जब निकला मुख से तबसे हिन्दी माई है, रोम-रोम में मैंने अपने हिन्दी ही बसाई है। तरुणाई में जब मैं आया विचार दिये इस हिन्दी ने, युवा बन आचार मिला जो पनपा वो इस हिन्दी से। नाम मिला, पहचान मिली ...
बिल्कुल सही कहा आपने लेकिन आज हम हिंदी
बोलने में ही आत्मविश्वास का अनुभव नहीं करते
किसी ने सच ही कहा है शीशा तो नहीं है मगर टूटता रहा,
बदकिस्मती तो देखिए इस भाषा की जो आया इसे लिखता रहा
गैरों ने जो लूटा तो क्या गम हुआ
लेकिन अपनों ने लूटा
तो बहुत गम हुआ।।
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