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हिन्दी

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पहला बोल जब निकला मुख से तबसे हिन्दी माई है, रोम-रोम में मैंने अपने हिन्दी ही बसाई है। तरुणाई में जब मैं आया विचार दिये इस हिन्दी ने, युवा बन आचार मिला जो पनपा वो इस हिन्दी से। नाम मिला, पहचान मिली ...

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लेखक के बारे में
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ankit raj sharma
समीक्षा
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  • author
    AnshuPriya Agrawal
    21 फ़रवरी 2020
    बिल्कुल सही कहा आपने लेकिन आज हम हिंदी बोलने में ही आत्मविश्वास का अनुभव नहीं करते किसी ने सच ही कहा है शीशा तो नहीं है मगर टूटता रहा, बदकिस्मती तो देखिए इस भाषा की जो आया इसे लिखता रहा गैरों ने जो लूटा तो क्या गम हुआ लेकिन अपनों ने लूटा तो बहुत गम हुआ।।
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    AnshuPriya Agrawal
    21 फ़रवरी 2020
    बिल्कुल सही कहा आपने लेकिन आज हम हिंदी बोलने में ही आत्मविश्वास का अनुभव नहीं करते किसी ने सच ही कहा है शीशा तो नहीं है मगर टूटता रहा, बदकिस्मती तो देखिए इस भाषा की जो आया इसे लिखता रहा गैरों ने जो लूटा तो क्या गम हुआ लेकिन अपनों ने लूटा तो बहुत गम हुआ।।