हाँ वो किसान है, कभी आसमान को तकता, कभी ज़मी को निरखता। मौसम की बेरुखी से वह परेशान है। हां वह किसान है गुड़िया हुई बीस की, बेटा रोज बात करता है स्कूल की फीस की। कई कर्ज़ों का एक कर्जदार , आस में की ...
हाँ वो किसान है, कभी आसमान को तकता, कभी ज़मी को निरखता। मौसम की बेरुखी से वह परेशान है। हां वह किसान है गुड़िया हुई बीस की, बेटा रोज बात करता है स्कूल की फीस की। कई कर्ज़ों का एक कर्जदार , आस में की ...