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हथेली में उगा सूरज

4.3
2851

पुरी के इस नयनाभिराम सागर तट पर उस समय भोर का तारा डूबा नहीं था, अंगड़ाई लेती हुई अलसभोर, मेरे आस-पास पसरी हुई थी और उषा रानी अपने मस्तक पर लाल टीका लगने का इंतजार कर रही थी. मैं अपने पावों के नीचे ...

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समीक्षा
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  • कुल टिप्पणी
  • author
    jagat narayan chaurasiya
    18 सितम्बर 2017
    अनुपम, अद्वितीय, बेजोड़, अत्यंत प्रेरणादायक! मैडम, कहाँ से लायीं इतने अच्छे विचार इस कहानी को लिखने के लिए। वास्तव में इसे कहानी कहना इसका अपमान होगा। ये तो जीवन जीने का मंत्र है।
  • author
    Dr.Vibha Sharma
    21 सितम्बर 2017
    आह और वाह के बहाव में से कभी पाठक उभरा है तो कभी सिर तक डूब गया है। उत्तम रचना । सार्थक प्रयास । आने वाली नई रचनाओं की इंतजार रहेगी ।
  • author
    Ranjana Mishra
    01 अक्टूबर 2017
    Sunder rachna
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    jagat narayan chaurasiya
    18 सितम्बर 2017
    अनुपम, अद्वितीय, बेजोड़, अत्यंत प्रेरणादायक! मैडम, कहाँ से लायीं इतने अच्छे विचार इस कहानी को लिखने के लिए। वास्तव में इसे कहानी कहना इसका अपमान होगा। ये तो जीवन जीने का मंत्र है।
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    Dr.Vibha Sharma
    21 सितम्बर 2017
    आह और वाह के बहाव में से कभी पाठक उभरा है तो कभी सिर तक डूब गया है। उत्तम रचना । सार्थक प्रयास । आने वाली नई रचनाओं की इंतजार रहेगी ।
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    Ranjana Mishra
    01 अक्टूबर 2017
    Sunder rachna