pratilipi-logo प्रतिलिपि
हिन्दी

हथेली में सरसों कभी मत उगाना

3.8
1618

हथेली में सरसों कभी मत उगाना अगर हो सके तो हमें भूल जाना सितारों के आगे जहाँ क्या बनाए बिखरता दिखे है, लुटा सा जमाना कभी बदलियां हो उधर यूँ समझना कुहासे घिरा है मेरा आशियाना कवायद ये कैसी, कहानी कहाँ ...

अभी पढ़ें
लेखक के बारे में
author
सुशील यादव

जन्म 30 जून 1952 दुर्ग छत्तीसगढ़ रिटायर्ड डिप्टी कमीश्नर , कस्टम्स,सेन्ट्रल एक्साइज एवं सर्विस टेक्स व्यंग ,कविता,कहानी का स्वतंत्र लेखन |रचनाएँ स्तरीय मासिक पत्रिकाओं यथा कादंबिनी ,सरिता ,मुक्ता तथा समाचार पत्रं के साहित्य संस्करणों में प्रकाशित |अधिकतर रचनाएँ gadayakosh.org ,रचनाकार.org ,अभिव्यक्ति ,उदंती ,साहित्य शिल्पी ,एव. साहित्य कुञ्ज में नियमित रूप से प्रकाशित |

समीक्षा
  • author
    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    PANKAJ KUMAR SRIVASTAVA
    28 ফেব্রুয়ারি 2020
    बेहतरीन। मेरी रचनाये भी पढे व अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करे ।
  • author
    Jai Sharma
    26 এপ্রিল 2020
    ग़ज़ल अच्छी थी ।शुक्रया
  • author
    whatsapp stetas love
    16 অক্টোবর 2023
    👍👍👍👍👍👍👍👍
  • author
    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    PANKAJ KUMAR SRIVASTAVA
    28 ফেব্রুয়ারি 2020
    बेहतरीन। मेरी रचनाये भी पढे व अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करे ।
  • author
    Jai Sharma
    26 এপ্রিল 2020
    ग़ज़ल अच्छी थी ।शुक्रया
  • author
    whatsapp stetas love
    16 অক্টোবর 2023
    👍👍👍👍👍👍👍👍