
 प्रतिलिपिहथेली में सरसों कभी मत उगाना अगर हो सके तो हमें भूल जाना सितारों के आगे जहाँ क्या बनाए बिखरता दिखे है, लुटा सा जमाना कभी बदलियां हो उधर यूँ समझना कुहासे घिरा है मेरा आशियाना कवायद ये कैसी, कहानी कहाँ की हमें खुद शर्म से, पड़ा सर झुकाना न चाहत के दम भरते, रोते कभी भी शिकायत का लहजा न लगता पुराना ...
रिपोर्ट की समस्या
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