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हथेली में सरसों कभी मत उगाना

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हथेली में सरसों कभी मत उगाना अगर हो सके तो हमें भूल जाना सितारों के आगे जहाँ क्या बनाए बिखरता दिखे है, लुटा सा जमाना कभी बदलियां हो उधर यूँ समझना कुहासे घिरा है मेरा आशियाना कवायद ये कैसी, कहानी कहाँ ...

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लेखक के बारे में
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सुशील यादव

जन्म 30 जून 1952 दुर्ग छत्तीसगढ़ रिटायर्ड डिप्टी कमीश्नर , कस्टम्स,सेन्ट्रल एक्साइज एवं सर्विस टेक्स व्यंग ,कविता,कहानी का स्वतंत्र लेखन |रचनाएँ स्तरीय मासिक पत्रिकाओं यथा कादंबिनी ,सरिता ,मुक्ता तथा समाचार पत्रं के साहित्य संस्करणों में प्रकाशित |अधिकतर रचनाएँ gadayakosh.org ,रचनाकार.org ,अभिव्यक्ति ,उदंती ,साहित्य शिल्पी ,एव. साहित्य कुञ्ज में नियमित रूप से प्रकाशित |

समीक्षा
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  • कुल टिप्पणी
  • author
    PANKAJ KUMAR SRIVASTAVA
    28 फेब्रुवारी 2020
    बेहतरीन। मेरी रचनाये भी पढे व अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करे ।
  • author
    Jai Sharma
    26 एप्रिल 2020
    ग़ज़ल अच्छी थी ।शुक्रया
  • author
    whatsapp stetas love
    16 ऑक्टोबर 2023
    👍👍👍👍👍👍👍👍
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    PANKAJ KUMAR SRIVASTAVA
    28 फेब्रुवारी 2020
    बेहतरीन। मेरी रचनाये भी पढे व अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करे ।
  • author
    Jai Sharma
    26 एप्रिल 2020
    ग़ज़ल अच्छी थी ।शुक्रया
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    16 ऑक्टोबर 2023
    👍👍👍👍👍👍👍👍