हास्य और उपहास की। दुनिया है निराली। जो कह सके ना उपहास में। वो हास्य में कह डाली करते रहे जब हास्य तो। देते रहे ताली। बारी आई उपहास की। मिलने लगी गाली। कैसी ये परम्परा। ये कैसा रिवाज है। विन हास्य ...
हास्य और उपहार की दुनिया हैं निराली जो कह सके ना उपहार में वो हास्य में कह डाली.... बहुत ही बढ़िया लिखा हैं आपने
बेहतरीन प्रस्तुति रचना .... ✍....👍👍👍👍👌👌👌👌
👌👌👌👌👌👌👏👏👏👏👏💯💯💯💯💯💯
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