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हस्ती के शज़र में

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हस्ती के शज़र में जो यह चाहो कि चमक जाओ कच्चे न रहो बल्कि किसी रंग मे पक जाओ मैंने कहा कायल मै तसव्वुफ का नहीं हूँ कहने लगे इस बज़्म मे जाओ तो थिरक जाओ मैंने कहा कुछ खौफ कलेक्टर का नहीं है कहने लगे आ जाएँ अभी वह तो दुबक जाओ मैंने कहा वर्जिश कि कोई हद भी है आखिर कहने लगे बस इसकी यही हद कि थक जाओ मैंने कहा अफ्कार से पीछा नहीं छूटता कहने लगे तुम जानिबे मयखाना लपक जाओ मैंने कहा अकबर मे कोई रंग नहीं है कहने लगे शेर उसके जो सुन लो तो फडक जाओ ...

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लेखक के बारे में

मूल नाम : अकबर हुस्सैन रिज़वी उपनाम : अकबर अलाहाबादी जन्म : 16 नवंबर 1846 देहावसान: 15 फरवरी 1921 भाषा : उर्दू विधाएँ : ग़ज़ल, शायरी अकबर अलाहाबादी उर्दू व्यंग्य के अग्रणी रचनाकारों में से एक हैं, इनके काफी शेरों एवम ग़ज़लों में सामाजिक दर्द को सरल भाषा में हास्यपूर्क ढंग से उकेरा गया है। "हंगामा है क्यूं बरपा" इनकी मशहूर ग़ज़लों में से एक है

समीक्षा
  • author
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  • कुल टिप्पणी
  • author
    GARVIT KHARE
    22 अप्रैल 2025
    बहुत उम्दा
  • author
    arjun
    29 जनवरी 2019
    बहुत अच्छी ग़जल
  • author
    sakshi sabnam
    20 जनवरी 2019
    very nice
  • author
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  • author
    GARVIT KHARE
    22 अप्रैल 2025
    बहुत उम्दा
  • author
    arjun
    29 जनवरी 2019
    बहुत अच्छी ग़जल
  • author
    sakshi sabnam
    20 जनवरी 2019
    very nice