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हरी-भरी धरती

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धरती की हरीतिमा निद्रा में लीन हरे रंग की चादर से आवृत्त नवयुवती के समान नव पल्लवों व रंग-बिरंगे पुष्पों के आभूषणों के तन में लिपटे सौंदर्य से स्वयं को निहारती आत्म-मुग्धता की सीमाओं को बन्धन ...

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लेखक के बारे में
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प्रमोद कुमार

मैं अभिव्यक्ति हूं, भावनाओं की शब्दों में मन के चित्र को ,कागज पर उकेरती है लेखनी

समीक्षा
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    30 अगस्त 2019
    वाह क्या वर्णन किया है।बहुत सुन्दर।👌👌👌👌👌
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    30 अगस्त 2019
    वाह क्या वर्णन किया है।बहुत सुन्दर।👌👌👌👌👌