हर शाख पे उल्लू बैठा है, अंजामे-गुलिस्ताँ क्या होगा पोषक ही शोषक बन जाये इस जनता का क्या होगा रक्षक ही भक्षक बन जाये तो इस उपवन का क्या होगा भेडों की खाल में छिपे भेड़िये, बापू के वतन का क्या ...
नाम तो सुधीर लेकिन
लेखनी बिल्कुल अधीर
कविता के दर्पण में सिमटी
जीवन की हर एक तस्वीर
चिंतन के सागर में डूबी
और चेतना का नभ छूती
छंदों की सीपी में ढलती
मोती बनती मन की पीर
-सुधीर अधीर
सारांश
नाम तो सुधीर लेकिन
लेखनी बिल्कुल अधीर
कविता के दर्पण में सिमटी
जीवन की हर एक तस्वीर
चिंतन के सागर में डूबी
और चेतना का नभ छूती
छंदों की सीपी में ढलती
मोती बनती मन की पीर
-सुधीर अधीर
रिपोर्ट की समस्या
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