किसी ऊँचाई पर पहुचने के बाद एक इंसान खुद को अकेला पाता है, फिर वो औरों से क्या कहता है, वही इस कविता में दिखाने की कोशिश की है मैने, आप से अनुरोध है कि बताएं मेरी कोशिश कैसी रही ।
मत पुछ इस पंछी से कहाँ जाना है,
पंख पसार उड़ चले हैं, इस उन्मुक्त गगन में,
जहां दिन ढल जाये, बस वहीं ठिकाना है।
कल आज और कल की फिकर क्यों हो हमे,
जब अपनी खिदमत् करता सारा जमाना है ।
सारांश
मत पुछ इस पंछी से कहाँ जाना है,
पंख पसार उड़ चले हैं, इस उन्मुक्त गगन में,
जहां दिन ढल जाये, बस वहीं ठिकाना है।
कल आज और कल की फिकर क्यों हो हमे,
जब अपनी खिदमत् करता सारा जमाना है ।
रिपोर्ट की समस्या
रिपोर्ट की समस्या
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