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है बातें बहुत सी, कहूँ कैसे

4.8
394

किसी ऊँचाई पर पहुचने के बाद एक इंसान खुद को अकेला पाता है, फिर वो औरों से क्या कहता है, वही इस कविता में दिखाने की कोशिश की है मैने, आप से अनुरोध है कि बताएं मेरी कोशिश कैसी रही ।

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लेखक के बारे में

मत पुछ इस पंछी से कहाँ जाना है, पंख पसार उड़ चले हैं, इस उन्मुक्त गगन में, जहां दिन ढल जाये, बस वहीं ठिकाना है। कल आज और कल की फिकर क्यों हो हमे, जब अपनी खिदमत् करता सारा जमाना है ।

समीक्षा
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  • कुल टिप्पणी
  • author
    29 अप्रैल 2018
    शानदार रचना
  • author
    Abhishek Parichha
    02 जनवरी 2017
    Bahut hi khubsurat aise hi achchhi achchhi kavitayen lekhte rheaur khub kamyab bane
  • author
    Abhishek kumar
    02 जनवरी 2017
    jabardast... prayas jari rakhen... nikhar ayegi!! 👍👌
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  • author
    29 अप्रैल 2018
    शानदार रचना
  • author
    Abhishek Parichha
    02 जनवरी 2017
    Bahut hi khubsurat aise hi achchhi achchhi kavitayen lekhte rheaur khub kamyab bane
  • author
    Abhishek kumar
    02 जनवरी 2017
    jabardast... prayas jari rakhen... nikhar ayegi!! 👍👌