है जुबाॅं आहत मेरी और आॅख पथराई हुयी। कैसे नाजुक मोड़ पर ये जिन्दगी आई हुयी। आइए, ले जाइए बदले कलम के रोटियाॅं योजना कोई नई इस शहर में आई हुयी। जुगनुओं का कद बढ़ा, इतना बढ़ा, बढत़ा गया फिर रही है ...
है जुबाॅं आहत मेरी और आॅख पथराई हुयी। कैसे नाजुक मोड़ पर ये जिन्दगी आई हुयी। आइए, ले जाइए बदले कलम के रोटियाॅं योजना कोई नई इस शहर में आई हुयी। जुगनुओं का कद बढ़ा, इतना बढ़ा, बढत़ा गया फिर रही है ...