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ग्यान बिरह कौ अंग

4.6
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दीपक पावक आंणिया, तेल भी आंण्या संग। तीन्यूं मिलि करि जोइया, (तब) उड़ि उड़ि पड़ैं पतंग॥1॥ मार्‌या है जे मरेगा, बिन सर थोथी भालि। पड्या पुकारे ब्रिछ तरि, आजि मरै कै काल्हि॥2॥ हिरदा भीतरि दौ बलै, धूंवां ...

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कबीर
समीक्षा
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  • author
    Manjit Singh
    05 जुलाई 2020
    bhasha Prakrit hai .sunder hai
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    Manjit Singh
    05 जुलाई 2020
    bhasha Prakrit hai .sunder hai