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गुलाब का मटका

4.5
30346

गुलाब का मटका गुलाब , अरी ओ गुलाब! जी बाबू जी । जा सपाटे(जल्दी) से जा और पानी का लोटा और गिलास ले आ । शाहपुर वाली जिज्जी(दीदी) आ गई है। और जिज्जी आवे में कौनउ दिक्कत तो नइ भई। अरे नइ किशन । क़ाय ...

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लेखक के बारे में
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चारु "उषा" जैन

#SocialWorker #Dreamer #Seeker #Foodie #HistoryBuff #Novice #ProudBundelkhandi ज्यादा नहीं लिखती, ज्यादा खास भी नहीं लिखती। सीखने का प्रयास निरंतर जारी है। पर जितना भी लिखती हूँ, कोशिश यही रहती है कि शब्दों के साथ न्याय कर सकूं।

समीक्षा
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    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    BRIJ BHOOSHAN KHARE
    11 मई 2020
    सरल शब्दों में मानवीय संवेदनाओं को उकेरती आप की ये रचना। हास्य के साथ करुणता भी है। अल्प त्रुटि की सजा पूरे जीवन भर भोगनी पड़ती है। अच्छी अभिव्यक्ति और शानदार प्रस्तुति।
  • author
    Renu Kakkar
    16 अगस्त 2021
    बहुत ही सुंदर भाव प्रवण रचना मन को कहानी अंत तक बांधे रहती है कुछ अपने लोग ही दूसरों का बुरा करते हैं गुलाब की मन की व्यथा मन को छू जाती है
  • author
    Tanuja Bhushan
    27 जुलाई 2020
    बहुत ही बढ़िया कहानी है लेकिन अपने ही लोगों के कारण गुलाब को बहुत कष्ट सहना पड़ा बहुत दुख होता है होता ऐसी ग़लीज़ मानसिकता पर
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    BRIJ BHOOSHAN KHARE
    11 मई 2020
    सरल शब्दों में मानवीय संवेदनाओं को उकेरती आप की ये रचना। हास्य के साथ करुणता भी है। अल्प त्रुटि की सजा पूरे जीवन भर भोगनी पड़ती है। अच्छी अभिव्यक्ति और शानदार प्रस्तुति।
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    Renu Kakkar
    16 अगस्त 2021
    बहुत ही सुंदर भाव प्रवण रचना मन को कहानी अंत तक बांधे रहती है कुछ अपने लोग ही दूसरों का बुरा करते हैं गुलाब की मन की व्यथा मन को छू जाती है
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    Tanuja Bhushan
    27 जुलाई 2020
    बहुत ही बढ़िया कहानी है लेकिन अपने ही लोगों के कारण गुलाब को बहुत कष्ट सहना पड़ा बहुत दुख होता है होता ऐसी ग़लीज़ मानसिकता पर