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गुड्डी की साइकल

3.6
4447

नन्ही सी गुड्डी ने भी अपनी सहेलियों को देख कर साइकल की जिद कर ही दी ।क्युकी!अब वो बड़ी जो हो गयी थी रिक्शा मे छोटे छोटे बच्चों के साथ बैठ कर जाने मे उसे शर्म आने लगी थी। तो एक दिन शाम को पापा ऑफीस ...

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लेखक के बारे में

चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय से एम कॉम करने के बाद , पिछले कुछ समय से लिखना शुरू किया , अपनी लेखनी के माध्यम से कुछ अधूरे किस्से पूरे करती हूं , कुछ सामाजिक बुराईयों का हल ढूंढने की कोशिश भी करती हूं , जिसके माध्यम से समाज को अच्छा सन्देश दे सकूँ , हाल ही में शिकायत प्रतियोगिता में सांत्वना पुरस्कार मिलने से सकारात्मक भाव आया है , समाचार पत्रों में समय समय पर लेख , कवितायें प्रकाशित होती है , आज लेखनी में जो भी पहचान बना पाई हूँ , उसका पूरा श्रेय मेरी मां को जाता है जो अब हमारे बीच नही है अगर अच्छी लेखक बन पाऊं तो उन्हें ये मेरी सच्ची श्रद्धाजंलि होगी ।

समीक्षा
  • author
    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    Mukesh Verma
    10 जून 2019
    नई साईकिल कभी भी पंचर हो सकती है लेकिन बाल (वॉल्व) 4दिन मे नहीं कट सकता। सुन्दर रचना
  • author
    sunaina pandya
    29 मई 2020
    bakvas time vaste...bachho ok sunane k liye padho but muje hi bor lagi
  • author
    Amit Mishra
    02 अप्रैल 2021
    बाकी कहानी तो ठीक है लेकिन आपने कहानी का अचानक ऐसे अंत कर दिया जैसे कोई जल्दबाजी हो। अंत कम से कम एक सीख के साथ होना चाहिए था न कि अफसोस के साथ
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  • author
    Mukesh Verma
    10 जून 2019
    नई साईकिल कभी भी पंचर हो सकती है लेकिन बाल (वॉल्व) 4दिन मे नहीं कट सकता। सुन्दर रचना
  • author
    sunaina pandya
    29 मई 2020
    bakvas time vaste...bachho ok sunane k liye padho but muje hi bor lagi
  • author
    Amit Mishra
    02 अप्रैल 2021
    बाकी कहानी तो ठीक है लेकिन आपने कहानी का अचानक ऐसे अंत कर दिया जैसे कोई जल्दबाजी हो। अंत कम से कम एक सीख के साथ होना चाहिए था न कि अफसोस के साथ