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गृहिणी

4.7
19

कहाँ आसान था गृहिनी होना चलती कलम छोड़ कड़छी चलाना, अग्नि के रिश्तें से बंध बचपन भूलना, किताबें छोड़ गृहस्थी पढ़ना, सहेलियाँ छोड़ दीवारों से बतियाना, मस्ती भुला बड़ी होने का ढोंग रचना, घड़ी उतार खनकती ...

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लेखक के बारे में
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Arushi

मैं इत्र से महकूँ, ये आरजू नहीं है तमन्ना है मेरे किरदार से खुशबू आए......

समीक्षा
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  • author
    31 मई 2021
    गृहणी के संघर्ष को बताती शानदार प्रस्तुति आपकी।
  • author
    31 मई 2021
    bilkul sahi likha hai aapne❣️
  • author
    31 मई 2021
    bahut khub didu👌
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    31 मई 2021
    गृहणी के संघर्ष को बताती शानदार प्रस्तुति आपकी।
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    31 मई 2021
    bilkul sahi likha hai aapne❣️
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    31 मई 2021
    bahut khub didu👌