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गिल्लू /महादेवी वर्मा

4.8
6506

अचानक एक दिन सवेरे कमरे से बरामदे में आकर मैंने देखा, दो कौवे एक गमले के चारों ओर चोंचों से छूआ-छुऔवल जैसा खेल खेल रहे हैं। यह काकभुशुंडि भी विचित्र पक्षी है - एक साथ समादरित, अनादरित, अति ...

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लेखक के बारे में

मैं विनोद कुमार राव "भारतीय" आप सभी का बहुत स्वागत करता हूँ। हमारे जीवन में बहुत उतार चढ़ाव आते हैं। कभी दुःख है तो कभी सुख है एक सिक्के के दो पहलू है। दोस्तों , बिना अफ़सोस किये हमें निरंतर आगे बढ़ते रहना चाहिए ! मैं हमेशा अपनी खुद की लिखित रचनाऐ ही प्रकाशित करता हूँ। अधिक जानकारी के लिए मेरे ब्लॉग https://vinodkumarrao.blogspot.com पर भी मेरी स्वंय रचित रचनाये हिंदी और अंग्रेजी भाषाओं में पढ सकते है

समीक्षा
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    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    Vimal sid
    01 दिसम्बर 2018
    आज भी उतनी ही interesting.... हाईस्कूल की यादें भी ताज़ा हो गई ... Thanks bro
  • author
    Meena Rawat
    22 सितम्बर 2020
    bahut hi bhavbheen kahani hai, Mahadevi Verma ki high school mein padhi ye rachna mujhe yaad thi lekin aaj phir padhkar school ki kai yaadein bhi Taza ho gayi.... shukriya is kahani ke liye😇😇
  • author
    Anupa Tirkey
    22 सितम्बर 2020
    मैंने प्राइमरी में पढ़ी है ये कहानी ।
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    Vimal sid
    01 दिसम्बर 2018
    आज भी उतनी ही interesting.... हाईस्कूल की यादें भी ताज़ा हो गई ... Thanks bro
  • author
    Meena Rawat
    22 सितम्बर 2020
    bahut hi bhavbheen kahani hai, Mahadevi Verma ki high school mein padhi ye rachna mujhe yaad thi lekin aaj phir padhkar school ki kai yaadein bhi Taza ho gayi.... shukriya is kahani ke liye😇😇
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    Anupa Tirkey
    22 सितम्बर 2020
    मैंने प्राइमरी में पढ़ी है ये कहानी ।