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घिसी हुई चप्पल......

4.9
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एक सोसायटी का फ्लैट....    फ्लैट के भीतर शूकेस में रखें साहब के चमचमाते बूट ने मेमसाहब की घिसी हुई चप्पल से कहा .... ...

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सरोज वर्मा

कमल कहानियाँ

समीक्षा
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  • कुल टिप्पणी
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    UMA SHARMA "अर्तिका"
    24 অক্টোবর 2021
    बहुत ही सारगर्भित और सार्थक रचना प्रस्तुति की है बिल्कुल सही कहा आपने व्यस्त जीवनशैली में अपने लिए समय निकालना बहुत मुश्किल काम होता है,,,, चप्पलें पैरों में पहन कर तो हम अपने घर गृहस्थी के कामों को पूरा करती है,,,जब हमें आराम करने का समय नहीं मिलता तो पैरों में हर वक़्त पहनने वाली चप्पलें कैसे नहीं घिसें गी,,,,, आपने एक नारी की नियमित दिनचर्या को बहुत ही सारगर्भित और सार्थक तरीके से अभिव्यक्ति किया है सुन्दर प्रस्तुति 👌👌👌👌👌👌👌👌👌
  • author
    कंचन कठैत
    23 অক্টোবর 2021
    बहुत खूब लिखा सभी का यही दिनचर्या है । सुबह का जो नास्ता रह जाता है वही फिर बाद में कमजोरी कर देता है । पर क्या करे लगभग सभी महिलाओं का यही हाल है ।उन्हें काम से फुर्सत ही नहीं मिलती । 👌👌
  • author
    Krishna Shukla
    24 অক্টোবর 2021
    इस विषय पर बिलकुल सार्थक सटीक रचना... व्यस्ततम जीवन मेँ स्वयं को समय नहीं तव चप्पल घिस भी जाय तो सोचने का समय कहाँ
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    UMA SHARMA "अर्तिका"
    24 অক্টোবর 2021
    बहुत ही सारगर्भित और सार्थक रचना प्रस्तुति की है बिल्कुल सही कहा आपने व्यस्त जीवनशैली में अपने लिए समय निकालना बहुत मुश्किल काम होता है,,,, चप्पलें पैरों में पहन कर तो हम अपने घर गृहस्थी के कामों को पूरा करती है,,,जब हमें आराम करने का समय नहीं मिलता तो पैरों में हर वक़्त पहनने वाली चप्पलें कैसे नहीं घिसें गी,,,,, आपने एक नारी की नियमित दिनचर्या को बहुत ही सारगर्भित और सार्थक तरीके से अभिव्यक्ति किया है सुन्दर प्रस्तुति 👌👌👌👌👌👌👌👌👌
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    कंचन कठैत
    23 অক্টোবর 2021
    बहुत खूब लिखा सभी का यही दिनचर्या है । सुबह का जो नास्ता रह जाता है वही फिर बाद में कमजोरी कर देता है । पर क्या करे लगभग सभी महिलाओं का यही हाल है ।उन्हें काम से फुर्सत ही नहीं मिलती । 👌👌
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    Krishna Shukla
    24 অক্টোবর 2021
    इस विषय पर बिलकुल सार्थक सटीक रचना... व्यस्ततम जीवन मेँ स्वयं को समय नहीं तव चप्पल घिस भी जाय तो सोचने का समय कहाँ