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ग़ज़ल/नज़्म - आज़ दिख रहा गर होश में तो मानो यार की आगोश कहाँ

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आज दिख रहा गर होश में तो मानो यार की आगोश कहाँ, जिंदगी के किसी भी कोने में जीने का कोई जोश कहाँ। जब मदहोशी ना पी झाँककर उसकी आँखों में मैंने तो, आया मैं मयखानों से ही पीकर पर देखो मैं मदहोश कहाँ। ...

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लेखक के बारे में
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अनिल कुमार

ग़ज़ल पढ़ना और उनमें शब्दों को पिरोने की कारीगरी मेरे दिल को सुकून पहुँचाती है । मैं भी कोशिश करता हूँ लेकिन ये हुनर मुझे पूरी तरह से आया नहीं है । रचनाएं, कहानियाँ, कविताएं पढ़ना बहुत अच्छा लगता है ।

समीक्षा
  • author
    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    Sushma Sharma
    08 अगस्त 2020
    सचमुच सुन्दर!! दो बार पढ़ा 😊 शुरु की दो लाइन में का की जगह की लिखा है भैया आपने।
  • author
    कल्पना (Rms)
    08 अगस्त 2020
    बहुत बढ़िया लिखा आपने भैया🙏👌 और सबसे अच्छा लगता है, जो आप कठिन शब्दों के अर्थ भी लिखते हो।
  • author
    Neelam Sharma
    08 अगस्त 2020
    क्या बात है बहुत लाज़वाब सरजी,,,,,👌👌🙏🙏🙏🙏 हर एक अल्फ़ाज़ तारीफेकाबिल👏👏👏👏👏👏
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    Sushma Sharma
    08 अगस्त 2020
    सचमुच सुन्दर!! दो बार पढ़ा 😊 शुरु की दो लाइन में का की जगह की लिखा है भैया आपने।
  • author
    कल्पना (Rms)
    08 अगस्त 2020
    बहुत बढ़िया लिखा आपने भैया🙏👌 और सबसे अच्छा लगता है, जो आप कठिन शब्दों के अर्थ भी लिखते हो।
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    Neelam Sharma
    08 अगस्त 2020
    क्या बात है बहुत लाज़वाब सरजी,,,,,👌👌🙏🙏🙏🙏 हर एक अल्फ़ाज़ तारीफेकाबिल👏👏👏👏👏👏