पिता थे उसके ईमान, ईमानदारी थी उनकी पहचान, पैसों की तंगी रहती थी, भाई बहन थे वो सात, पिता दे सके थे शिक्षा, और... आदर्श थे शिक्षक करते क्या पर! बेटे की नजरों में थीं, यह सब बकवास -- पैसों की तंगी ...
जब कोई आदर्श मुल्यहीन होने लगती है तब समाज, परिवार
दुर्घटनाओं के शिकार होता है, पिता, भाई, सब अपने जगह ठीक थे फर्क यही था कोई वक्त से पहले और कोई वक्त से पीछे जिसका परिणाम परिवार भोग रहा था
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