pratilipi-logo प्रतिलिपि
हिन्दी

घर की मुर्गी दाल बराबर

5
29

शीर्षक - घर की मुर्गी दाल बराबर आज कल के लोगों का अजब हाल है दोस्तों समझते हैं खुद को बहुत समझदार है दोस्तों अपने घर की जरूरतों का उन्हें खयाल नहीं है पर बाहर के लोग उनसे मालामाल है दोस्तों कितनी भी ...

अभी पढ़ें
लेखक के बारे में

एक शिक्षक जो हमेशा विद्यार्थी रहना चाहती है और हर प्राणी से कुछ न कुछ सीखना चाहती है, सादा जीवन उच्च विचार "जिंदगी जब दर्द बन जाती है तो कागज़ पे उतर जाती है किताबें दोस्त बन जाती हैं कलम तब साथ निभाती है"

समीक्षा
  • author
    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    22 अगस्त 2022
    कर डाला हमने अपनों का ही काम तमाम है दोस्तो। क्युकी घर घर का अब यही हाल है दोस्तो। जब तक मिली न थी बीवी तो बुरा हाल है दोस्तो । जो मिल जाए तो फिर क्यों बर्दास्त हे दोस्तो। हो चुके कलुषित मन का कमाल है दोस्तो । प्रेमिका पत्नी से कई गुना ज्यादा कमाल है दोस्तो । चकाचौंध की दौड़ में साथी भी छोड़े है दोस्तो। जिनसे अपना सर्वस्व न्योछावर किया अब उसको ही कोसते है दोस्तो। वाह वाह संगीता जी सच में आप ने बहुत खूब ओर सटीक लिखा है। 🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷
  • author
    22 अगस्त 2022
    इसी शीर्षक पर आज मेरा भी मन कर रहा था लिखने को और मन गया भी वहां तक ,घर के लोगों की तो सुध नही।मतलब घर की सादी दाल किसी को पसंद नही आती दूसरों कि मुर्गी ही कुछ ज्यादा अच्छी लगती है। जिंदगी का दुर्भाग्य सबको प्रभावित कर रहा है वास्तविकता को भली-भांति बयां किया हैंआपने प्रिया जी
  • author
    Kapil Nagrale
    22 अगस्त 2022
    वाह संगीता जी वाह क्या बात है बिल्कुल सही कहा है आपने वर्तमान परिस्थितियों में कुछ ऐसा ही है अपनी बीवी से अच्छी पड़ोसन लगती है | पास में है हीरा , पड़ोसन लगती है खीरा जिसे आपने बखूबी भावनाओं के साथ बयान किया लाजवाब प्रस्तुति
  • author
    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    22 अगस्त 2022
    कर डाला हमने अपनों का ही काम तमाम है दोस्तो। क्युकी घर घर का अब यही हाल है दोस्तो। जब तक मिली न थी बीवी तो बुरा हाल है दोस्तो । जो मिल जाए तो फिर क्यों बर्दास्त हे दोस्तो। हो चुके कलुषित मन का कमाल है दोस्तो । प्रेमिका पत्नी से कई गुना ज्यादा कमाल है दोस्तो । चकाचौंध की दौड़ में साथी भी छोड़े है दोस्तो। जिनसे अपना सर्वस्व न्योछावर किया अब उसको ही कोसते है दोस्तो। वाह वाह संगीता जी सच में आप ने बहुत खूब ओर सटीक लिखा है। 🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷
  • author
    22 अगस्त 2022
    इसी शीर्षक पर आज मेरा भी मन कर रहा था लिखने को और मन गया भी वहां तक ,घर के लोगों की तो सुध नही।मतलब घर की सादी दाल किसी को पसंद नही आती दूसरों कि मुर्गी ही कुछ ज्यादा अच्छी लगती है। जिंदगी का दुर्भाग्य सबको प्रभावित कर रहा है वास्तविकता को भली-भांति बयां किया हैंआपने प्रिया जी
  • author
    Kapil Nagrale
    22 अगस्त 2022
    वाह संगीता जी वाह क्या बात है बिल्कुल सही कहा है आपने वर्तमान परिस्थितियों में कुछ ऐसा ही है अपनी बीवी से अच्छी पड़ोसन लगती है | पास में है हीरा , पड़ोसन लगती है खीरा जिसे आपने बखूबी भावनाओं के साथ बयान किया लाजवाब प्रस्तुति