**गीत: एकाकी जीवन** मैं किसी सुनसान टापू पर, एक एकाकी जीवन जीना चाहता हूँ। जहाँ मैं बिना किसी व्यक्ति और लोगों के संग के, समय व्यतीत करना चाहता हूँ। मुझे एकांतवास में जीना है, मुझे अब मनुष्यों का संग ...
कुछ तो मैं ही पागल था और कुछ था उसका पागलपन
सोचो मैंने झेला होगा कितना कितना पागलपन
मुझको पागल कहती हो तुम मान लिया मैं पागल हूँ
लेकिन मै जो पागल हूँ तो तुम हो मेरा पागलपन
उन आँखो पर हाथ रखा फिर उन होंटो को चूम लिया
उसने पूछा क्या है ये सब मैंने बोला पागलपन,
🙏🌹🌹🌹🙏🍀🌹
सारांश
कुछ तो मैं ही पागल था और कुछ था उसका पागलपन
सोचो मैंने झेला होगा कितना कितना पागलपन
मुझको पागल कहती हो तुम मान लिया मैं पागल हूँ
लेकिन मै जो पागल हूँ तो तुम हो मेरा पागलपन
उन आँखो पर हाथ रखा फिर उन होंटो को चूम लिया
उसने पूछा क्या है ये सब मैंने बोला पागलपन,
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बहुत सुन्दर प्रस्तुति है आप महान रचनाकार हो 💐🙏 मेरी रचना भी पढ़ें समीक्षा दें सब्सक्राइब करें प्रोत्साहन राशि ज़रूर प्रदान करें बहुत-बहुत धन्यवाद 💐🙏💐💐💐💐💐💐 मोहनलाल यदु
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