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गीले पैरों के निशान

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तुम्‍हारे पैर ज़मीन पर रहें मेरे पैरों के नीचे भी रहे ज़मीन पंजे उचकाकर नहीं पहुंचते हाथ सपनों तक साख इसी मेंं है उसकी कि आसमान अासमान रहे----। हवाओं की स्‍लेट पर लिखे गलत हिज्‍जे रेत की तख्‍ती पर लिखा ...

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लेखक के बारे में
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माया मृग

माया मृग नाम मैं ने खुद रखा | परिजनों ने नाम दिया था संदीप कुमार ,जो अब सिर्फ सरकारी रिकॉर्ड में रह गया है | मेरा जन्म 26 अगस्त 1965 को फाजिल्का (पंजाब ) में हुआ | जन्म के दस दिनों बाद ही परिवार को पंजाब छोड़ हनुमानगढ़ (राजस्थान ) आना पडा , मेरे जीवन के शुरुआती 25 साल यहाँ बीते | इसके बाद जयपुर आकर बस गया |पहले शिक्षा विभाग में सरकारी नौकरी की और नौकरी छोड़कर पत्रकारिता | इसके बाद मुद्रण और प्रकाशन को व्यवसाय के रूप में चुना | प्रकाशित कृतियाँ – 1 – शब्द बोलते हैं (कविता संग्रह ) – 1988 ई. 2 – ......कि जीवन ठहर न जाए (कविता संग्रह ) – 1999 ई. 3 – जमा हुआ हरापन (कविता संग्रह } – 2013 ई. 4 – एक चुप्पे शख्स की डायरी (गद्य } – 2013 ई. 5 – कात रे मन ....कात (गद्य ) – 2013 ई.

समीक्षा
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  • कुल टिप्पणी
  • author
    Manjit Singh
    01 जुलाई 2020
    aapki kavita ne to mujhe Maya ki tarah mrigmareechka ki tarah peechhe laga diya
  • author
    PANKAJ KUMAR SRIVASTAVA
    14 अप्रैल 2019
    अच्छी रचना। मेरी रचनाये भी पढे
  • author
    Ravindra N.Pahalwam
    26 सितम्बर 2018
    रचना मुझे भाई...
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  • author
    Manjit Singh
    01 जुलाई 2020
    aapki kavita ne to mujhe Maya ki tarah mrigmareechka ki tarah peechhe laga diya
  • author
    PANKAJ KUMAR SRIVASTAVA
    14 अप्रैल 2019
    अच्छी रचना। मेरी रचनाये भी पढे
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    Ravindra N.Pahalwam
    26 सितम्बर 2018
    रचना मुझे भाई...