जीबी रोड यानी गारस्टिन बास्टिन रोड, मानो अगर आप यह से रुक गए एक रात तो आप अपने सरीफ होने का लाइसेंस गवा देंगे.......
वैसे बता दे आपको ये जगह .......राजधानी दिल्ली में सबसे बड़ा रेड लाइट एरिया जहां ...
अजमेरी गेट से खारी बावली अक्सर जाता रहता हूं। वहां पहले रिक्शे से, अब बैटरी रिक्शे से आना जाना होता है। दिन में भी लोहे की जालियों/झरोखों के पीछे सड़कों पर आते जाते राहगीरों को इशारे से बुलाते चेहरे बयां करते हैं कि पहले कभी जबरदस्ती इस पेशे में धकेली गई युवतियों ने पहले कभी विरोध किया होगा लेकिन इन कोठों के मालिकों और उनके मुस्तंडों ने इन्हें इतना प्रतारित किया होगा कि बाद में इसे अपनी नियति मानकर बाहर की दुनिया में लौटना नहीं चाहा। हिंदी फिल्मों ने इनकी दुर्दशा को खूब भुनाया किंतु इनकी सुध लेने वाला कोई नहीं आगे आया क्योंकि इन दलदल से निकले लोगों को आज का तथाकथित सभ्य समाज हमेशा हेय दृष्टि से देखता रहा है। पहले जैसे समाज सुधारक अब रहे नहीं। अब सरकारी अनुदान से अपनी जेब भरती समाजसेवी संस्थाएं और अपना वोट बैंक समझने वाले नेताओं से इनके बेहतरी की कोई उम्मीद भी तो नहीं है। आपके साहसिक लेख के लिए आपको बधाई।
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अजमेरी गेट से खारी बावली अक्सर जाता रहता हूं। वहां पहले रिक्शे से, अब बैटरी रिक्शे से आना जाना होता है। दिन में भी लोहे की जालियों/झरोखों के पीछे सड़कों पर आते जाते राहगीरों को इशारे से बुलाते चेहरे बयां करते हैं कि पहले कभी जबरदस्ती इस पेशे में धकेली गई युवतियों ने पहले कभी विरोध किया होगा लेकिन इन कोठों के मालिकों और उनके मुस्तंडों ने इन्हें इतना प्रतारित किया होगा कि बाद में इसे अपनी नियति मानकर बाहर की दुनिया में लौटना नहीं चाहा। हिंदी फिल्मों ने इनकी दुर्दशा को खूब भुनाया किंतु इनकी सुध लेने वाला कोई नहीं आगे आया क्योंकि इन दलदल से निकले लोगों को आज का तथाकथित सभ्य समाज हमेशा हेय दृष्टि से देखता रहा है। पहले जैसे समाज सुधारक अब रहे नहीं। अब सरकारी अनुदान से अपनी जेब भरती समाजसेवी संस्थाएं और अपना वोट बैंक समझने वाले नेताओं से इनके बेहतरी की कोई उम्मीद भी तो नहीं है। आपके साहसिक लेख के लिए आपको बधाई।
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