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गजल : ये बिखरी बिखरी जुल्फें

4.6
19

ये बिखरी बिखरी जुल्फें ये तीखे तीखे नैन ये जादू भरी मुस्कान  कर दे सबको बेचैन ये अदाऐं ये शोखियां ये मस्तियाँ ये जवानी हाय, क्या अब जीने भी न देगी, सुन दीवानी ये सुरूर ये गरूर ये फितूर बड़ी मगरूर ...

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लेखक के बारे में
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श्री हरि

हरि का अंश, शंकर का सेवक हरिशंकर कहलाता हूँ अग्रसेन का वंशज हूँ और "गोयल" गोत्र लगाता हूँ कहने को अधिकारी हूँ पर कवियों सा मन रखता हूँ हिन्दी, हिन्दू, हिन्दुस्तान से बेहद, प्यार मैं दिल से करता हूँ ।। गंगाजल सा निर्मल मन , मैं मुक्त पवन सा बहता हूँ सीधी सच्ची बात मैं कहता , लाग लपेट ना करता हूँ सत्य सनातन परंपरा में आनंद का अनुभव करता हूँ हिन्दी, हिन्दू, हिन्दुस्तान से बेहद, प्यार मैंदिल से करता हूँ

समीक्षा
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  • author
    Pushplata Kalantri
    13 दिसम्बर 2022
    बहुत सुंदर अभिव्यक्ति है आपकी एक अंतर के अहसास की 👌👌👌👌🤗🤗🤗🥰🥰🥰🌱☘️🌴🌲🌾🌿💐🌹💐🍀🪴🌳☘️🌱
  • author
    13 दिसम्बर 2022
    खूबसूरत रोमांचक प्रस्तुति आपकी भाई जी 🙏🙏💙💚💛
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    संतोष नायक
    13 दिसम्बर 2022
    बहुत ही अच्छी ग़जल लिखी है आपने।
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    Pushplata Kalantri
    13 दिसम्बर 2022
    बहुत सुंदर अभिव्यक्ति है आपकी एक अंतर के अहसास की 👌👌👌👌🤗🤗🤗🥰🥰🥰🌱☘️🌴🌲🌾🌿💐🌹💐🍀🪴🌳☘️🌱
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    13 दिसम्बर 2022
    खूबसूरत रोमांचक प्रस्तुति आपकी भाई जी 🙏🙏💙💚💛
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    संतोष नायक
    13 दिसम्बर 2022
    बहुत ही अच्छी ग़जल लिखी है आपने।