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गरीबी से बाज़ार तक

4.6
315

बच्चे की सिसकियों की आहटें सुन कर... उठ गई मां भूख से बेहाल लाल की कराहटें सुन कर... .घर में कुछ भी नही था आँखों के खारे पानी के सिवा... और बचा भी क्या था उस विधवा के पास मुरझाई जवानी के सिवा... दो ...

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लेखक के बारे में
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धीरज झा

नाम धीरज झा, काम - स्वछंद लेखन (खास कर कहानियां लिखना), खुद की वो बुरी आदत जो सबसे अच्छी लगती है मुझे वो है चोरी करना, लोगों के अहसास को चुरा कर कहानी का रूप दे देना अच्छा लगता है मुझे....किसी का दुःख, किसी की ख़ुशी, अगर मेरी वजह से लोगों तक पहुँच जाये तो बुरा ही क्या है इसमें :) .....इसी आदत ने मुझसे एक कहानी संग्रह लिखवा दिया जिसका नाम है सीट नं 48.... जी ये वही सीट नं 48 कहानी है जिसने मुझे प्रतिलिपि पर पहचान दी... इसके तीन भाग प्रतिलिपि पर हैं और चौथा और अंतिम भाग मेरे द्वारा इसी शीर्षक के साथ लिखी गयी किताब में....आप सब की वजह से हूँ इसीलिए कोशिश करूँगा कि आप सबका साथ हमेशा बना रहे... फेसबुक पर जुड़ें :- https://www.facebook.com/profile.php?id=100030711603945

समीक्षा
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  • author
    Mis शिवा
    16 মে 2020
    है कई बेबस इंसा इस जहां में, एक मेरा ही दर्द अलग नहीं।। वक्त ,हालत,और किस्मत सब थे,, शायद एक अकेला मै गुनहगार नहीं।। बहुत सुंदर रचना
  • author
    Janvi Singh
    17 সেপ্টেম্বর 2018
    😯😯
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    Mis शिवा
    16 মে 2020
    है कई बेबस इंसा इस जहां में, एक मेरा ही दर्द अलग नहीं।। वक्त ,हालत,और किस्मत सब थे,, शायद एक अकेला मै गुनहगार नहीं।। बहुत सुंदर रचना
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    Janvi Singh
    17 সেপ্টেম্বর 2018
    😯😯