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गरीबी

4.3
576

गरीबी भी कितनी अजीब हैं, शायद ये ही उनका नसीब हैं। गरीबी भी दो किस्म की देखीं, किसी को मन का तो किसी को तन का गरीब देखीं। धनी को मंदिर के अंदर , औंर गरीब को मंदिर के बाहर हाथ पसारते देखीं। वित्रष्णा ...

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लेखक के बारे में
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Sapna Singh
समीक्षा
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    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    06 മെയ്‌ 2018
    व्यगात्मक सुंदर अभिव्यक्ति।
  • author
    S Surya Dubey
    21 മാര്‍ച്ച് 2018
    bhutay S sundar likhat Ho aap
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    06 മെയ്‌ 2018
    व्यगात्मक सुंदर अभिव्यक्ति।
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    S Surya Dubey
    21 മാര്‍ച്ച് 2018
    bhutay S sundar likhat Ho aap