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फिसलन

4.4
137793

“ क्या हुआ दीदी ! बड़ी गुमसुम-सी बैठी हो |” - निधि ने सुधा को अकेले किसी सोच में डूबी देखकर, उसके पास बैठते हुए कहा | “ नहीं, कुछ नहीं, ज़िंदगी बस चलती रहती है हिचकौले खाते हुए |” - सुधा ने तन्द्रा ...

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लेखक के बारे में

प्रकाशित पुस्तकें – 13 ( हिंदी और पंजाबी में कविता, कहानी और समीक्षा पर ); ईनाम- विश्व हिंदी सचिवालय मारीशस द्वारा आयोजित अंतर्राष्ट्रीय हिंदी कहानी प्रतियोगिता में सौ डॉलर का सांत्वना पुरस्कार; जन्म तिथि - 23/10/1976; शिक्षा – एम. ए. हिंदी, इतिहास, ज्ञानी, बी.एड., उर्दू में सर्टिफिकेट कोर्स, हिंदी में नेट क्वालीफाइड; कार्यक्षेत्र – अध्यापन, लेक्चरर हिंदी ( स्कूल कैडर ); पता – गाँव व डाक – मसीतां, डबवाली, सिरसा ( हरियाणा ) ; Mo. - 87085-46183 Email - [email protected] मेरा कहानी-संग्रह यहाँ उपलब्ध है - https://www.amazon.in/dp/9386027992/

समीक्षा
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  • author
    अजीत@आनन्द
    27 নভেম্বর 2019
    hakikat... lekin bhai saheb sabhi purush aise Nahi hai.....bada negative perception hai purushon ke liye is story me..... फिसलन सेक्स,विवाहेत्तर संबंध या विवाह पूर्व संबंध में आदमी और औरत समान रूप से भागीदार होते हैं।क्या पुरुष और औरत का प्यार अलग अलग होता है।क्या पुरुष सिर्फ सेक्स और शरीर का भूखा है।इसी कहानी में असली हीरो तो सुधा का पति है। जो परिवार नामक संस्था चलाने के लिए खुद को कोल्हू के बैल की तरह अपने आपको गृहस्थी की चकरी में जोत लिया।और प्यार की आड़ में वासना की भूखी सुधा अपने जिस्म को पराए मर्दों को सौंपकर अपनी प्यास बुझाती है।महेश जैसे महादेव को छोड़कर भडवों से वफा की उम्मीद करती है। प्यार मन व तन दोनों की आवश्यकता है। और इसमें विवेक धैर्य त्याग व संयम का मेल नहीं होगा वह बलात्कार विकृति लस्ट वासना के अलावा कुछ भी नहीं होगा। उसका अंत वहीं होगा जो सुधा और निधि के प्यार का हुआ। कहानी में सारी सहानुभूति निधि और सुधा लूट ले जा रहीं हैं। बड़ा गलत हुआ बेचारियों के साथ। लेकिन उन्होंने जो उन्मुक्त भाव से जिस्म के मजे लूटे उससे मुझे नफरत और इर्स्या दोनों है। आप दोनों हाथों को लड्डू नही ले सकते हैं। या तो विवाह पूर्व यौन सुख का आनंद ले लीजिए। या फिर सुहागरात पर नथ उतरवाने और पति को अपने अछत योनि का गिफ्ट। आपको लगता है कि विरिजनिटी को सुहागरात में पति को गिफ्ट देना दकियानूसी है लेकिन भला यह कौन पति या पत्नी चाहते हैं कि सुहागरात से पहले दोनों किसी और औरत या मर्द के साथ संबंध बनाए हो। जीवन सिर्फ पाने का ही नाम नहीं है त्याग व संयम भी उसका अनिवार्य हिस्सा है। और शादी सिर्फ सेक्स के लिए बना संबंध नहीं है नर नारी के बीच बनने वाले सभी संबंधों की एक कसौटी है मापदंड है। सबसे कठिन जीवन गृहस्थ जीवन है। इसको दोनों को मिलकर साधना होता है। और यह सभी संबंधों का आधार होता है। मूर्ख नहीं थे वे लोग जिन्होंने कहा था कि चरित्र की यत्न पूर्वक रक्षा करनी चाहिए। आखिर जीवन में चरित्र भी तो कोई वस्तु है। भला कौन नर नारी ऐसे नहीं हैं जिनको दूसरों के प्रति शारीरिक या मानसिक लगाव नहीं होता है। पर आत्मनियंत्रण की शक्ति आपको फिसलन से रोकती है। और हा यदि हम फिसलने का आनन्द लेगे तो चोट का दर्द भी झेलने को तैयार रहना चाहिए। आमीन।
  • author
    मन मोहन भाटिया
    21 সেপ্টেম্বর 2018
    फिसलन में जाना या बचना हमारे खुद के हाथ में है। विवाह से पहले के शारीरिक संबंध जितना बुरा मानता हूं उससे अधिक विवाह के पश्चात विवाह के बाहर संबंध बनाना। जीवन खराब हो जाता है। खुद पर नियंत्रण रखना बहुत जरूरी है।
  • author
    Gunjan Gupta
    02 মার্চ 2019
    आपने पुरुष हो कर भी पुरुष जाति को एक्सपोज कर डाला.....आश्चर्य ..Very great , बहुत सीख देती हुई कहानी , बधाई आपको अच्छे लेखन के लिए
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    अजीत@आनन्द
    27 নভেম্বর 2019
    hakikat... lekin bhai saheb sabhi purush aise Nahi hai.....bada negative perception hai purushon ke liye is story me..... फिसलन सेक्स,विवाहेत्तर संबंध या विवाह पूर्व संबंध में आदमी और औरत समान रूप से भागीदार होते हैं।क्या पुरुष और औरत का प्यार अलग अलग होता है।क्या पुरुष सिर्फ सेक्स और शरीर का भूखा है।इसी कहानी में असली हीरो तो सुधा का पति है। जो परिवार नामक संस्था चलाने के लिए खुद को कोल्हू के बैल की तरह अपने आपको गृहस्थी की चकरी में जोत लिया।और प्यार की आड़ में वासना की भूखी सुधा अपने जिस्म को पराए मर्दों को सौंपकर अपनी प्यास बुझाती है।महेश जैसे महादेव को छोड़कर भडवों से वफा की उम्मीद करती है। प्यार मन व तन दोनों की आवश्यकता है। और इसमें विवेक धैर्य त्याग व संयम का मेल नहीं होगा वह बलात्कार विकृति लस्ट वासना के अलावा कुछ भी नहीं होगा। उसका अंत वहीं होगा जो सुधा और निधि के प्यार का हुआ। कहानी में सारी सहानुभूति निधि और सुधा लूट ले जा रहीं हैं। बड़ा गलत हुआ बेचारियों के साथ। लेकिन उन्होंने जो उन्मुक्त भाव से जिस्म के मजे लूटे उससे मुझे नफरत और इर्स्या दोनों है। आप दोनों हाथों को लड्डू नही ले सकते हैं। या तो विवाह पूर्व यौन सुख का आनंद ले लीजिए। या फिर सुहागरात पर नथ उतरवाने और पति को अपने अछत योनि का गिफ्ट। आपको लगता है कि विरिजनिटी को सुहागरात में पति को गिफ्ट देना दकियानूसी है लेकिन भला यह कौन पति या पत्नी चाहते हैं कि सुहागरात से पहले दोनों किसी और औरत या मर्द के साथ संबंध बनाए हो। जीवन सिर्फ पाने का ही नाम नहीं है त्याग व संयम भी उसका अनिवार्य हिस्सा है। और शादी सिर्फ सेक्स के लिए बना संबंध नहीं है नर नारी के बीच बनने वाले सभी संबंधों की एक कसौटी है मापदंड है। सबसे कठिन जीवन गृहस्थ जीवन है। इसको दोनों को मिलकर साधना होता है। और यह सभी संबंधों का आधार होता है। मूर्ख नहीं थे वे लोग जिन्होंने कहा था कि चरित्र की यत्न पूर्वक रक्षा करनी चाहिए। आखिर जीवन में चरित्र भी तो कोई वस्तु है। भला कौन नर नारी ऐसे नहीं हैं जिनको दूसरों के प्रति शारीरिक या मानसिक लगाव नहीं होता है। पर आत्मनियंत्रण की शक्ति आपको फिसलन से रोकती है। और हा यदि हम फिसलने का आनन्द लेगे तो चोट का दर्द भी झेलने को तैयार रहना चाहिए। आमीन।
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    मन मोहन भाटिया
    21 সেপ্টেম্বর 2018
    फिसलन में जाना या बचना हमारे खुद के हाथ में है। विवाह से पहले के शारीरिक संबंध जितना बुरा मानता हूं उससे अधिक विवाह के पश्चात विवाह के बाहर संबंध बनाना। जीवन खराब हो जाता है। खुद पर नियंत्रण रखना बहुत जरूरी है।
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    Gunjan Gupta
    02 মার্চ 2019
    आपने पुरुष हो कर भी पुरुष जाति को एक्सपोज कर डाला.....आश्चर्य ..Very great , बहुत सीख देती हुई कहानी , बधाई आपको अच्छे लेखन के लिए