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एकांत का उजाला.

3.9
3702

"पीछे मुड कर क्यूँ देखती हो? क्या है वहां? सिर्फ दर्द, परेशानियाँ......" "जानती हूँ..." चेहरे पर छाई रहने वाली हंसी कब की लुप्त हो चुकी थी. पीछे मुड कर नहीं देख रही थी बल्कि बार-बार पीछे घूमती गर्दन ...

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लेखक के बारे में
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प्रितपाल कौर

प्रितपाल कौर जन्म: 5 अगस्त शिक्षा : एम. एस. सी. फिजिक्स, एम.एड. और पी.जी.डी. इन कंप्यूटर एप्लीकेशन. करियर की शुरुआत विश्व विद्यालय में फिजिक्स के अध्यापन और आकाशवाणी से कैसुअल एनाउंसर के तौर पर की. लेखन भी लगभग साथ ही शुरू हुआ. आकाशवाणी से वार्ताएं प्रसारित, ड्रामा आर्टिस्ट रही. कहानियां और कवितायेँ प्रमुख राष्ट्रीय पत्रिकाओं और अख़बारों में प्रकाशित. बीसवीं सदी के अंतिम दशक में टेलीविज़न की दुनिया में कदम रखा दूरदर्शन की साप्ताहिक समाचार पत्रिका 'परख' के साथ संवाददाता के तौर पर. दो साल के इस सफ़र के बाद एन.डी.टी.वी. से बतौर संवाददाता छह साल तक सम्बद्ध रही. इस दौरान समाचारों की दुनिया को करीब से देखा, जिसके अनुभव अंग्रेज़ी उपन्यास 'हाफ मून' के लेखन में बेहद प्रभावी रहे. आकाशवाणी के लिए रेडियो सीरियल का निर्माण किया. साहित्य अकादमी के लिए डॉक्यूमेंट्री फिल्में प्रोड्यूस की. 2012 में पहला अंग्रेज़ी उपन्यास 'Half moon' प्रकाशित. अब तक तीन उपन्यास (दो हिंदी में), दो कहानी संग्रह (हिंदी) और एक कविता संग्रह (हिंदी) प्रकाशित. एक कहानी संग्रह का संपादन. दो उपन्यास हिंदी में शीघ्र प्रकाश्य. साथ ही कला पर दो पुस्तकों के अंग्रेज़ी अनुवाद भी . सम्प्रति: 6D NEWS वेबसाइट में Consulting Editor व स्वतंत्र पत्रकार. उपन्यास, कहानी और कविता लेखन जारी.

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  • author
    Shaline Gupta
    26 दिसम्बर 2019
    best
  • author
    Smriti Prakash
    17 मार्च 2021
    कितनी सहजता से नारी मन को प्रस्तुत किया शानदार अमृता प्रीतम जी की याद आ गई। भीतर की नारी सच में कभी नहीं मरती,हमेशा एक कंधा ढूंढती है,जिस पर सिर टिका कर निश्चिंत हो सके
  • author
    Rohini Pathak
    06 नवम्बर 2020
    hum sabhi ne khud apne charo or khud ek adrisya bandhan bana rakha hai jise todne se pahle itna sochte hai ki khud tut jate hai.
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    Shaline Gupta
    26 दिसम्बर 2019
    best
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    Smriti Prakash
    17 मार्च 2021
    कितनी सहजता से नारी मन को प्रस्तुत किया शानदार अमृता प्रीतम जी की याद आ गई। भीतर की नारी सच में कभी नहीं मरती,हमेशा एक कंधा ढूंढती है,जिस पर सिर टिका कर निश्चिंत हो सके
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    Rohini Pathak
    06 नवम्बर 2020
    hum sabhi ne khud apne charo or khud ek adrisya bandhan bana rakha hai jise todne se pahle itna sochte hai ki khud tut jate hai.