भाषा और शैली अच्छी है। विषय को सम सामयिक या घिसा पिटा भी नहीं कह सकते हैं। मनुष्य जैसी संगत पकड़ता है,वैसी ही मानसिकता में जीना चाहता है। कानून का डंडा जब तक नहीं चलेगा,समाज में सुधार आना मुश्किल लगता है।
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भाषा और शैली अच्छी है। विषय को सम सामयिक या घिसा पिटा भी नहीं कह सकते हैं। मनुष्य जैसी संगत पकड़ता है,वैसी ही मानसिकता में जीना चाहता है। कानून का डंडा जब तक नहीं चलेगा,समाज में सुधार आना मुश्किल लगता है।
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