"अनु....... तू पागल हो गई है क्या? कुछ समझ भी आ रहा तुझे कि तू बोल क्या रही है?"सुधा जी की आश्चर्य से आँखे बड़ी हो गई जैसे अभी कटोरों में से बाहर आ गिरेंगी। कपड़े उतारते हुए उनके हाथ हवा में ही रह ...
अपने दिल की बातों को शब्दों में ढ़ाल देती हूँ,
बस अपना मन कागज़ पर उतार देती हूँ।
कि ख्वाबों को सजा कर एक नई दुनियाँ बनाती हूँ,
शब्दों के पंखों पर बिठा तुम्हें वो दुनियाँ दिखाती हूँ।
सारांश
अपने दिल की बातों को शब्दों में ढ़ाल देती हूँ,
बस अपना मन कागज़ पर उतार देती हूँ।
कि ख्वाबों को सजा कर एक नई दुनियाँ बनाती हूँ,
शब्दों के पंखों पर बिठा तुम्हें वो दुनियाँ दिखाती हूँ।
अनु की बात भी सही है। इस संसार में सभी को समानता का अधिकार है। अपनी खुशियों को अपने हिसाब से जीने की तमन्ना भी होती है।
जहाँ एक नारी अपने घर, परिवार और बच्चों की फरमाइशों को पूरा करते-करते खुद को भूल सी जाती है। कई-कई बार उसे ये याद नहीं रहता है कि वो कब मुस्कुराई थी।
पहला पहलू तो ये है कि ये कहानी हर स्त्री की पीड़ा को बयां करती है।
दूसरा ये की स्त्रियों की उस पीड़ा को व्यक्त किया गया है जो सामान्यतः प्रत्यक्ष रूप से दिखाई नहीं देती है लेकिन समझने की आवश्यकता है।
शानदार लेखनी...👌👌
🎈🎈🌺🌺🌺🌺😊😊😊🌹🌹🌹🙏🙏🙏🙏
रिपोर्ट की समस्या
सुपरफैन
अपने प्रिय लेखक को सब्सक्राइब करें और सुपरफैन बनें !
भावुक करती कहानी.. बहुत ही jwalant समस्या आपने उठाया है कहानी में... लगभग 100 में से 98 नारियां इसी पीड़ा से गुजरती होंगी ऐसा मैं अनुमान के तौर पर कह रहा हूं... Anu ने अपने सपनों को सच कर दिखाया... एक mishal पेश किया कि नारी सिर्फ भोगने की वास्तु नहीं उसका भी वज़ूद है उसके पास भी दिल है ज़ज्बात है और उसका भी अस्तित्व है और उसे भी दर्द होता है is पुरुष प्रधान के दकियानूसी समाज में जहां औरतों को ही हार बात का जिम्मेदार बताकर चुप करा दिया जाता है.... बहुत ही सुकून भरा अच्छा ending किया..
रिपोर्ट की समस्या
सुपरफैन
अपने प्रिय लेखक को सब्सक्राइब करें और सुपरफैन बनें !
एक विवाहिता स्त्री की जीवन व्यथा का अपनी लेखनी के माध्यम से बहुत ही खुबसूरत चित्रण प्रस्तुत किया है, एक उत्कृष्ट अभिव्यक्ति, अति सराहनीय लेखन शैली, अतुलनीय, बेमिसाल प्रसंग🌹🌹👌👌🌹🌹
रिपोर्ट की समस्या
सुपरफैन
अपने प्रिय लेखक को सब्सक्राइब करें और सुपरफैन बनें !
अनु की बात भी सही है। इस संसार में सभी को समानता का अधिकार है। अपनी खुशियों को अपने हिसाब से जीने की तमन्ना भी होती है।
जहाँ एक नारी अपने घर, परिवार और बच्चों की फरमाइशों को पूरा करते-करते खुद को भूल सी जाती है। कई-कई बार उसे ये याद नहीं रहता है कि वो कब मुस्कुराई थी।
पहला पहलू तो ये है कि ये कहानी हर स्त्री की पीड़ा को बयां करती है।
दूसरा ये की स्त्रियों की उस पीड़ा को व्यक्त किया गया है जो सामान्यतः प्रत्यक्ष रूप से दिखाई नहीं देती है लेकिन समझने की आवश्यकता है।
शानदार लेखनी...👌👌
🎈🎈🌺🌺🌺🌺😊😊😊🌹🌹🌹🙏🙏🙏🙏
रिपोर्ट की समस्या
सुपरफैन
अपने प्रिय लेखक को सब्सक्राइब करें और सुपरफैन बनें !
भावुक करती कहानी.. बहुत ही jwalant समस्या आपने उठाया है कहानी में... लगभग 100 में से 98 नारियां इसी पीड़ा से गुजरती होंगी ऐसा मैं अनुमान के तौर पर कह रहा हूं... Anu ने अपने सपनों को सच कर दिखाया... एक mishal पेश किया कि नारी सिर्फ भोगने की वास्तु नहीं उसका भी वज़ूद है उसके पास भी दिल है ज़ज्बात है और उसका भी अस्तित्व है और उसे भी दर्द होता है is पुरुष प्रधान के दकियानूसी समाज में जहां औरतों को ही हार बात का जिम्मेदार बताकर चुप करा दिया जाता है.... बहुत ही सुकून भरा अच्छा ending किया..
रिपोर्ट की समस्या
सुपरफैन
अपने प्रिय लेखक को सब्सक्राइब करें और सुपरफैन बनें !
एक विवाहिता स्त्री की जीवन व्यथा का अपनी लेखनी के माध्यम से बहुत ही खुबसूरत चित्रण प्रस्तुत किया है, एक उत्कृष्ट अभिव्यक्ति, अति सराहनीय लेखन शैली, अतुलनीय, बेमिसाल प्रसंग🌹🌹👌👌🌹🌹
रिपोर्ट की समस्या
सुपरफैन
अपने प्रिय लेखक को सब्सक्राइब करें और सुपरफैन बनें !
रिपोर्ट की समस्या
रिपोर्ट की समस्या
रिपोर्ट की समस्या