वह मेरे सामने वाले घर में रहतीं थी……हर सुबह अपने छत की मुंडेर पर पढ़ते हुए मैं उन्हे देखा करता….शांत सौम्य चेहरा….काजल भरी खूबसूरत बड़ी बड़ी आँखें…सलीके से जूड़े में बंधे बाल…..करीने से काँधे पर बंधा हुआ साड़ी का पल्लू…फुर्तीले कदमों से चलती हुई …कभी इधर कभी उधर….यूँ लगता था हर वक़्त मसरूफ हैं… बस कभी कभी शाम के समय छत पर दिखती थीं….मुंडेर पर कोहनी टिकाये…दोनों हथेलियों में अपने चेहरे को समेटे हुए….जाने क्या देखती रहती थीं आकाश की ओर….एक अजीब सा सूनापन दिखता था उस समय उनकी आँखों में… ….जब मेरी ओर ...
रिपोर्ट की समस्या
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