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एक अनोखी रात

4.1
46573

शरद पुर्णिमा का दिन था. चांद अपने पूरे यौवन के साथ आकाश पटल पर चमचमा रहा था. मौसम बडा सुहाना हो गया था. रात के बारह बजे सारा जंगल आराम से सो रहा था. चारों ओर शांति का साम्राज्य था. पॆड की एक डाल पर ...

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लेखक के बारे में
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गोवर्धन यादव
समीक्षा
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    बीनू मिश्रा
    03 दिसम्बर 2017
    बंदर समझ गया था कि मनुष्य बनने के बाद वह भी स्वार्थी बन जाएगा, इसलिए अगले साल कमलताल में न कूदना ही उसे सही लगा होगा....
  • author
    Meena Bhatt
    07 सितम्बर 2018
    कहानी पढ़ कर पंचतंत्र की कहानियों की तरह लगी।कुछ ऊपर उठाकर लिखए कलम में ताकत हैं आपकी।सधन्यवाद
  • author
    Vandana Rastogi
    09 अक्टूबर 2018
    मानव तन कठिनाई से मिलता है।बन्दर कोअपनी आजादी प्रिय है।लोनो का साथ नहीं हो सकता है।उद्देश्य नही समझ मे आया।
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    बीनू मिश्रा
    03 दिसम्बर 2017
    बंदर समझ गया था कि मनुष्य बनने के बाद वह भी स्वार्थी बन जाएगा, इसलिए अगले साल कमलताल में न कूदना ही उसे सही लगा होगा....
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    Meena Bhatt
    07 सितम्बर 2018
    कहानी पढ़ कर पंचतंत्र की कहानियों की तरह लगी।कुछ ऊपर उठाकर लिखए कलम में ताकत हैं आपकी।सधन्यवाद
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    Vandana Rastogi
    09 अक्टूबर 2018
    मानव तन कठिनाई से मिलता है।बन्दर कोअपनी आजादी प्रिय है।लोनो का साथ नहीं हो सकता है।उद्देश्य नही समझ मे आया।