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ऐ मैना तू गुमसुम क्यूँ है

4.5
1127

ऐ मैना तू गुमसुम क्यूँ है, क्यूँ छत पे आना छोड़ दिया ? क्यूँ तेरी आँखें अश्रु भरी, क्यूँ गीत सुनना छोड़ दिया ? क्या तेरे सपनो का घर, कोई प्रोमेट्रिक तोड़ गया ? या बीच सफ़र में हाथ तेरा, प्रोफाइल ...

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लेखक के बारे में

रणजीत प्रताप सिंह प्रतिलिपी के सह-संस्थापक हैं, उन्होने कमप्यूटर साइंस से इंजीनियरिंग एवम एम.बी.ए भी किया हुआ है। प्रतिलिपी से पहले वे सिटी बैंक(Citibank) एवम वोदाफोन(Vodafone) में काम कर चुके हैं। लेकिन इन सबसे अधिक वे अपने आप को एक पाठक के तौर पर पहचानते हैं, वे लेखक या रचनाकार बिल्कुल नहीं, लेकिन कभी कभी चंद पंक्तियां लिख देते हैं।

समीक्षा
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  • कुल टिप्पणी
  • author
    13 जानेवारी 2017
    आदरणीय रणजीत जी, बहुत अच्छी कविता है। इसमें ब्यङ्ग्य का पुट भी सन्निहित है। कविता हिंदी और अंग्रेजी शब्दों के मेल से लिखी गयी है। आजकल यही प्रवृत्ति चल पड़ी है। अगर निहायत ही खालिश हिंदी शब्दों का प्रयोग कर लिखते तो ज्यादा अच्छा रहता। फिर भी बहुत सुन्दर प्रयास! साधुवाद!
  • author
    Sayam Bihari
    11 फेब्रुवारी 2019
    सुन्दर प्रयास । कविता में शासवत तत्वो का अभाव खटकता है ।वैसे भावनाओं की तुकबंदी अचछी बन पड़ी हैं ।
  • author
    18 सप्टेंबर 2024
    मैना के बहाने मध्यमवर्गीय की व्यथा को बखूबी बयां किया है आपने। सर , आप वर्तमान परिस्थितियों को बहुत गम्भीरता से ऑब्जर्व करते हैं , यही बात आपके शब्दों में स्पष्ट दिखायी देती है।
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    13 जानेवारी 2017
    आदरणीय रणजीत जी, बहुत अच्छी कविता है। इसमें ब्यङ्ग्य का पुट भी सन्निहित है। कविता हिंदी और अंग्रेजी शब्दों के मेल से लिखी गयी है। आजकल यही प्रवृत्ति चल पड़ी है। अगर निहायत ही खालिश हिंदी शब्दों का प्रयोग कर लिखते तो ज्यादा अच्छा रहता। फिर भी बहुत सुन्दर प्रयास! साधुवाद!
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    Sayam Bihari
    11 फेब्रुवारी 2019
    सुन्दर प्रयास । कविता में शासवत तत्वो का अभाव खटकता है ।वैसे भावनाओं की तुकबंदी अचछी बन पड़ी हैं ।
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    18 सप्टेंबर 2024
    मैना के बहाने मध्यमवर्गीय की व्यथा को बखूबी बयां किया है आपने। सर , आप वर्तमान परिस्थितियों को बहुत गम्भीरता से ऑब्जर्व करते हैं , यही बात आपके शब्दों में स्पष्ट दिखायी देती है।