तुम प्रेम हो… तुम प्रीत हो.. मनमीत हो… ,हो.. थे… और रहोगे….आज से ठीक दो साल पहले दैहिक साथ छूटा है…लेकिन आज भी तुम भावना की जीत हो.. तुम सर्वस्य हो..। अपरिचय से सर्वस्य का सफ़र…जिसके अनगिनत सोपान…और ...
बहुत दुख होता है जब अपना प्रियजन हमसे बिछड़ता है। पर यही तो सृष्टि का नियम है। शायद उनकी भगवान को हमसे ज्यादा जरूरत होगी। यही सोचकर दिल को तसल्ली दे सकते हैं।
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