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दुर्गा चालीसा

4.8
1031

नमो नमो दुर्गे सुख करनी। नमो नमो दुर्गे दुःख हरनी॥१॥ निरंकार है ज्योति तुम्हारी। तिहूँ लोक फैली उजियारी॥२॥ शशि ललाट मुख महाविशाला। नेत्र लाल भृकुटि विकराला॥३॥ रूप मातु को अधिक सुहावे। दरश करत जन अति ...

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अज्ञात
समीक्षा
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    29 ਸਤੰਬਰ 2019
    अतिसुंदर प्रस्तुति बधाई हो जय माता दी कृपया स्नेह स्वरूप मेरी रचना श्रीदुर्गाचरितमानस पढ़ने का कष्ट करे समीक्षा की प्रतीक्षा रहेगी जय माता दी आभार
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    29 ਸਤੰਬਰ 2019
    अतिसुंदर प्रस्तुति बधाई हो जय माता दी कृपया स्नेह स्वरूप मेरी रचना श्रीदुर्गाचरितमानस पढ़ने का कष्ट करे समीक्षा की प्रतीक्षा रहेगी जय माता दी आभार