गंगोत्री बहुत कशमकश में थी। उसे बहुत डर लग रहा था। मन में एक उम्मीद भी थी पर एक डर भी था कि कहीं इस बार भी... एक अनचाहे भविष्य के बारे में सोचकर ही वो सिहर उठती थी। कैसे और क्या बताये वो हिमवान से? ...
सास प्राध्यापिका और पति इंजीनियर... हमारे देश में ऐसे पढ़े लिखे ही कुंचित ख्यालों के होते हैं।जिन्हें बेटे के बिना अपना भविष्य अंधकार मय लगता है।पढ़ाई केवल नौकरी पाने का ज़रिया मात्र रह गई है। पर जो पढ़गये हैं उम्मीद उन्हीं से है। कहानी का अंत दुखद है पर सीख भी यही है। सामाजिक सच को उजागर करती कहानी।
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maine dekha h apni maa ko ye sub jhelte hue but thank god ki mere papa ne meri maa ka pura satth diya aaj hum 4 bhen or ek bhai h .mere parents ne kabhi humhe kam nshi samja .i love my mummy papa.
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