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दोष

3.3
1532

"अजीब नसीब लेकर उतरी है लड़कियां, किसी को दुलार तो किसी को दुत्कार| क्यों उन्हें एक बोझ समझा जाता है ?" यह सोचते- सोचते न जाने कब मेरी आँख लग गयी | हर सुबह उठना ,एक नयी उम्मीद , एक नयी आशा ,एक नयी किरण के साथ ,कि शायद आज मुझे मेरे अपनों से उनका लाड प्यार मिलेगा| आज के बदलते ज़माने में शायद मेरा ही परिवार पीछे रह गया जो लड़कियों को एक पराया धन मानते हैं| अभी बड़ी ही कितनी हुई हु मैं , पर देखो किस्मत कि मार ने मुझे कितना बड़ा बना दिया | खेलने- कूदने कि उम्र में , मैं अपना ज्यादातर समय इसी उलझन ...

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लेखक के बारे में
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शिखा शर्मा
समीक्षा
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  • कुल टिप्पणी
  • author
    r h
    03 अप्रैल 2017
    ये कोई कहानी है ही नहीं। योंही चार लाइने लिख कर भेज दीं
  • author
    Juhi
    04 मई 2017
    kuch bhi likh diya hy
  • author
    09 जुलाई 2017
    जो ऐसा सोचते हैं ,गलत सोचते है लड़का हो या लड़की संसार दोनों से मिलकर चलता है ,......?
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  • author
    r h
    03 अप्रैल 2017
    ये कोई कहानी है ही नहीं। योंही चार लाइने लिख कर भेज दीं
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    Juhi
    04 मई 2017
    kuch bhi likh diya hy
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    09 जुलाई 2017
    जो ऐसा सोचते हैं ,गलत सोचते है लड़का हो या लड़की संसार दोनों से मिलकर चलता है ,......?