"अजीब नसीब लेकर उतरी है लड़कियां, किसी को दुलार तो किसी को दुत्कार| क्यों उन्हें एक बोझ समझा जाता है ?" यह सोचते- सोचते न जाने कब मेरी आँख लग गयी | हर सुबह उठना ,एक नयी उम्मीद , एक नयी आशा ,एक नयी किरण के साथ ,कि शायद आज मुझे मेरे अपनों से उनका लाड प्यार मिलेगा| आज के बदलते ज़माने में शायद मेरा ही परिवार पीछे रह गया जो लड़कियों को एक पराया धन मानते हैं| अभी बड़ी ही कितनी हुई हु मैं , पर देखो किस्मत कि मार ने मुझे कितना बड़ा बना दिया | खेलने- कूदने कि उम्र में , मैं अपना ज्यादातर समय इसी उलझन ...
रिपोर्ट की समस्या
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