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दूध में गिरि मक्खी

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शाम आई कयामत आ गई रोशनी थी कम भरे गिलास में मक्खि गिर गई मक्खि बेचारी किस्मत की मारी जिसे दूध समझ कर गिरी थी वह तो डिटर्जेंट का बनावटी नकली दूध था पंख फड़फड़ाती रही निकल ‌ना सकी मालिक आया ...

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लेखक के बारे में
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Ashok Kansal

Nothing to show.Writing is not my profession it has become my hobby & passion .

समीक्षा
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    Dr.Aradhana Neekhara
    23 मई 2022
    मिलावटी दूध पर अच्छा व्यंग ।
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    Dr.Aradhana Neekhara
    23 मई 2022
    मिलावटी दूध पर अच्छा व्यंग ।